नमस्कार मित्रों
आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से हरिवंश पुराण पाठ के फायदे बताने वाले हैं। इसके अलावा यह भी बताने वाले है की हरिवंश पुराण का पाठ कैसे करें तथा हरिवंश पुराण के रचयिता कौन है। यह सभी महत्वपूर्ण जानकारी पाने के लिए हमारा यह आर्टिकल अंत तक जरुर पढ़े।
हमारे प्राचीन पुराणों में हरिवंश पुराण का भी काफी महत्व हैं। ऐसा माना जाता है की हरिवंश पुराण का पाठ करने से व्यक्ति को भगवान श्री कृष्ण के चरणों में जगह मिलती हैं। हरिवंश पुराण का पाठ करना अतिउत्तम माना जाता हैं। इस पुराण का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में काफी लाभ होते हैं।
वैसे तो हरिवंश पुराण का पाठ करने से भगवान श्री कृष्ण के श्री चरणों में मनुष्य को स्थान मिलता हैं. इसके अलावा हरिवंश पुराण का पाठ करने से व्यक्ति का जीवन सुखमय बनता हैं।
लेकिन हरिवंश पुराण का मुख्य फायदा यह है। की जो दंपति काफी कोशिश करने के बाद भी संतान सुख से वंचित हैं। तो ऐसे दंपति के लिए हरिवंश पुराण का पाठ बहुत ही फायदेमंद साबित होता हैं। हरिवंश पुराण का पाठ करने से दंपति को संतान सुख की प्राप्ति होती हैं।
जो दंपति संतान सुख से वंचित हैं। उन्हें नीचे दिए गए नियम अनुसार हरिवंश पुराण का पाठ करना चाहिए।
शादी हुए काफी समय हो गया है। लेकिन शादी के पांच वर्ष नहीं हुए है। तो नीचे दिए गए तरीके से हरिवंश पुराण पाठ करे।
नियमति रूप से सूर्योदय के समय उठकर जल में हल्दी डालकर दंपति सूर्य देवता को जल अर्पित करे।
इसके बाद “क्लीं कृष्ण क्लीं” मंत्र का 108 बार जाप करे।
इसके पश्चात हरिवंश पुराण का पाठ करे
यह उपाय रोजाना करते रहना हैं. और एकादशी का व्रत करना चाहिए। इससे अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती हैं।
शादी हुए पांच वर्ष से अधिक समय हो गया है वीऔर संतान सुख से वंचित है। तो नीचे दिए गए तरीके से हरिवंश पुराण का पाठ करे।
नियमति रूप से सूर्योदय के समय उठकर जल में रोली मिलाकर दंपति सूर्य देवता को जल अर्पित करे
इसके पश्चात “ओम क्लीं कृष्णाय नम:” मंत्र का 108 बार जाप करे
तथा पत्नी को नियमति रूप से तुलसी के नीचे घी का दीपक जलाना चाहिए
इसके पश्चात हरिवंश पुराण का पाठ करे।
यह उपाय करने से शादी के पांच वर्ष बाद भी संतान प्राप्ति नहीं हुई हैं। तो संतान की प्राप्ति होती हैं।
हरिवंश वेदार्थप्रकाशक महाभारत ग्रन्थका ही अन्तिम पर्व है। आदिपर्वके अनुक्रमणिकाध्यायमें महाभारतको सौ पर्वोवाला ग्रन्थ बतलाया गया है। उसके अन्तिम तीन पर्व इस हरिवंश-ग्रन्थमें ही सम्मिलित हैं। यह बात अनुक्रमणिकाध्यायमें स्पष्टरूपसे निर्दिष्ट है
हरिवंशस्ततः पर्व पुराणं खिलसंज्ञितम् । विष्णुपर्व शिशोश्चर्या विष्णोः कंसवधस्तथा ॥ भविष्यं पर्व चाप्युक्तं खिलेष्वेवाद्भुतं महत् । एतत्पर्वशतं पूर्णं व्यासेनोक्तं महात्मना ॥
(महा० आदि०, अध्याय २ । ८२-८३ )
जैसे वेदविहित सोमयाग उपनिषदोंके बिना साङ्ग सम्पन्न नहीं होता, वैसे ही श्रीमहाभारतका पारायण भी हरिवंश - पारायणके बिना पूर्ण नहीं होता।* किंतु हरिवंशका पारायण गीता आदिकी तरह स्वतन्त्र भी किया जाता है। इस तरह यह 'पुराणं खिलसंज्ञितम्' आदिपर्व (२ ८२ ) - के आधारपर 'हरिवंशपुराण' तथा 'हरिवंशपर्व' इन दोनों ही नामोंसे विद्वानोंके बीच विख्यात है ।
पुत्रप्राप्तिकी कामनासे हरिवंश श्रवणकी परम्परा भारतमें चिरकालसे प्रचलित है। विशेषकर यदि जन्मकुण्डलीमें संतानभाव सूर्यके द्वारा दृष्ट, आविष्ट या बाधित हो तो हरिवंश श्रवण ही उसका प्रतिकार बतलाया गया है
वंशान्तो हरिरुष्णगौ त्रिपुराहाब्जे भूसुते रुद्रियं सौम्ये सम्पुटकांस्यपात्रविधिवज्जीवे च पित्र्यातिथिः शुक्रे गोप्रतिपालनं च कथितं मन्दे च मृत्युञ्जयः कन्यादानभुजङ्गकेतुकपिलाः संतानसौख्यप्रदाः ॥
श्रवणं हरिवंशस्य कर्तव्यं च यथाविधि जुहुयाच्च दशांशेन दूर्वामाज्यपरिप्लुताम् ॥
( मन्त्रमहार्णव, वृद्धसूर्यार्णव) यों भी इसके श्रवणकी बहुत महिमा है। जो फल अठारहों पुराणोंके सुननेसे मिलता है, वह अकेले हरिवंशके सुननेसे हो जाता है
अष्टादशपुराणानां श्रवणाद् यत्फलं लभेत्। तत्फलं समवाप्नोति वैष्णवो नात्र संशयः ॥ (भविष्यपर्व १३५ ४ )
* इसके अतिरिक्त निम्नलिखित प्रमाणोंसे भी हरिवंश महाभारतका अङ्ग सिद्ध होता है
१- हरिवंशपर्वके ३०वें अध्यायमें - 'यथा ते कथितं पूर्वं मया राजर्षिसत्तम:' इसके द्वारा वैशम्पायनने आदिपर्वस्थ पूर्वोक्त ययातिकी कथाका स्मरण दिलाया है और उसके लिये 'कथितं पूर्व' पहले कहे जानेकी बात कही है। इससे दोनोंकी एकग्रन्थता स्पष्ट है।
२ - इसीके ३२वें अध्यायमें 'त्वं चास्य धाता गर्भस्य सत्यमाह शकुन्तला' कहा गया है। आकाशवाणीने शकुन्तलाके जिस कथनकी बात कही हैं, वह महाभारतके आदिपर्व में ही है। ३- भविष्यपर्व ७३वें अध्यायमें जो भगवान् श्रीकृष्णके कैलास-गमनका कारण पूछा गया है, वह आनुशासनिक पर्वके संक्षिप्त कैलास-गमन - वृत्तको लक्ष्य करके ही पूछा गया है। इसी प्रकार और भी कई उदाहरण हैं।
भगवद्भक्ति तथा कथानककी दृष्टिसे भी इसका बड़ा महत्त्व है। भगवान् श्रीकृष्णसे सम्बद्ध तथा अन्यान्य अगणित कथाएँ इसमें ऐसी हैं, जो अन्यत्र नहीं आयीं।
पारायण - क्रमसे इसके नवाह्नका ही विधान है। उसकी पूरी विधि इस ग्रन्थके अन्तमें दे दी गयी है। * केवल नवाह्न पारायणके विश्रामस्थल नहीं दिये गये हैं। वह 'कृत्यसार - समुच्चय' ग्रन्थके २२५ वें पृष्ठपर इस प्रकार बतलाया गया है
प्रथमे यदुवंशस्य कीर्तनावधि कीर्तयेत् । द्वितीयेऽह्नि पठेद् विद्वान् धेनुकस्य वधावधि ॥ जरासंधवधं यावत् तृतीयेऽह्नि विचक्षणः । पारिजातस्य हरणं चतुर्थेऽह्नि प्रकीर्तयेत् ॥ सैन्यभङ्गः शम्बरस्य पञ्चमेऽह्नि प्रयत्नतः । जनमेजयस्य वंशस्य भविष्यस्य च वर्णनम् ॥ षष्ठेऽह्नि तावद्वक्तव्यं पारायणशुभेच्छुना । सप्तमे दैत्यसैन्यानां विस्तारो यावदेव हि ॥ घण्टाकर्णसमाधिस्तु अष्टमेऽह्नि प्रयत्नतः नवमेऽह्नि समाप्तिः स्यात् पारायण उदाहृतः ॥
इसके अनुसार प्रतिदिन क्रमशः हरिवंशपर्वके ३५, विष्णुपर्वके १३, ४३, ७३, १०६ एवं भविष्यपर्वके २, ५०, ८० तथा १३५ वें अध्यायपर विश्राम करना चाहिये। एक दूसरा क्रम इस प्रकार भी बतलाया गया है
तथा ॥
च
प्रथमे
कृष्णजननं द्वितीये धेनुकार्दनम् । तृतीये कुण्डिनपुरे रुक्मिणीहरणं
चतुर्थे षट्पुरवधमार्यास्तोत्रं पञ्चमे मधोश्चरित्रं षष्ठे वै सप्तमे पावकस्तुतिः ॥
अष्टमे पौण्ड्रकवधो नवमेऽह्नि समापयेत् । वाचयेदनया रीत्या हरिवंशं यथाक्रमम् ॥
अर्थ स्पष्ट है। इस क्रममें थोड़ा-सा अन्तर है। तदनुसार प्रतिदिन हरिवंशपर्वके ३५ विष्णुपर्वके १३, ४३, ८२, १२० तथा भविष्यपर्वके १३, ६२, १०१ तथा १३५ वें अध्यायपर विश्राम करना चाहिये।
इसके अन्तमें संतान गोपाल- मन्त्र की अनुष्ठान - विधि, इसके कई प्रकार, संतान गोपाल-स्तोत्र, यन्त्र तथा विष्णु - शतनाम स्तोत्र - ये सब सटीक दे दिये गये हैं। आशा है की आपको हमारे द्वारा प्रदान की गई जानकारी अच्छी लगी होगी।
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🌹🏵️ ।।जय मां भवानी।।
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