नमस्कार मित्रों इस पोस्ट मित्रों
हमारे चैनल के सदस्य सौरव साहू जी के कहने पर आप सभी को माता मातंगी की साधना विधि उपलब्ध करवा रहा हूं संपूर्ण जानकारी विस्तार से मैंने आपको प्रदान किया आप संपूर्ण जानकारी को पड़ेगा अगर आप अधूरी जानकारी पढ़ कर चले जाएंगे तो बाद में आपको परेशानी होगी इसलिए संपूर्ण जानकारी को पूरे ध्यान से आप पड़ेगा और इसी तरीके से और भी आजाद से जुड़ी हुई चीजें प्राप्त करने के लिए आप हमें फॉलो कर लीजिए अगर आप हमें फॉलो करेंगे तो आप को हमारे द्वारा प्रदान की गई सारी जो पोस्ट होंगी और समय पर मिल पाएंगे इसलिए आप फॉलो जरूर कीजिएगा और अगर आपका कोई पर्सनल आप नीचे कमेंट कर दीजिएगा और सारी जानकारी को ध्यान से पड़ेगा।
माता मातंगी कौन है
मतंग
शिव
का नाम है। इनकी शक्ति मातंगी है। यह हरा वर्ण और चन्द्रमा को
मस्तक पर धारण करती हैं। यह पूर्णतया वाग्देवी की ही पूर्ति हैं। चार भुजाओं में
इन्होंने कपाल(जिसके ऊपर तोता बैठा), वीणा,खड्ग वेद धारण किया है। मां मातंगी
तांत्रिकों की सरस्वती हैं। पलास और मल्लिका पुष्पों एवं युक्त बेलपत्रों के
द्वारा पूजा करने से व्यक्ति के अंदर आकर्षण और स्तम्भन शक्ति का विकास होता है।
ऐसा व्यक्ति जो मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करेगा, वह अपने क्रीड़ा कौशल
से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण में भी यह
महाविद्या कारगर होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार मातंगी ही एक ऐसी देवी है
जिन्हें जूठन का भोग लगाया जाता है ऐसा कहते हैं कि मातंगी देवी को जुठा किये
बिना भोग नहीं लगता है । मातंगी देवी समता की सूचक है ।
ऐसा कहते
हैं,जब माता पार्वती को चंडाल स्त्रीऔ द्वारा अपने जुठन का भोग लगाया तब सभी
देवगण और शिव जी के भूतादिकगण इसका विरोध करने लग गए लेकिन माता पार्वती ने
चंडालिया की श्रद्धा को देख कर मातंगी का रूप लेकर उनके द्वारा चढ़ाए गए जूठन को
ग्रहण किया ।
मातंगी साधना समस्त प्रकार के भौतिक सुख प्रदान करती है maa matangi
माँ मातंगी साधना : यह साधना जल्दी फल देने वाली है। वर्तमान युग में, मानव जीवन के प्रारंभिक पड़ाव से अंतिम पड़ाव तक भौतिक आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील रहता है । व्यक्ति जब तक भौतिक जीवन का पूर्णता से निर्वाह नहीं कर लेता है, तब तक उसके मन में आसक्ति का भाव रहता ही है और जब इन इच्छाओ की पूर्ति होगी,तभी वह आध्यात्मिकता के क्षेत्र में उन्नति कर सकता है । मातंगी महाविद्या साधना एक ऐसी साधना है जिससे आप भौतिक जीवन को भोगते हुए आध्यात्म की उँचाइयो को छु सकते है । मातंगी महाविद्या साधना से साधक को पूर्ण गृहस्थ सुख ,शत्रुओ का नाश, भोग विलास,आपार सम्पदा,वाक सिद्धि, कुंडली जागरण ,आपार सिद्धियां, काल ज्ञान ,इष्ट दर्शन आदि प्राप्त होते ही है ।
हमारे महान ऋषियों - मुनियों ने कहा है -
" मातंगी मेवत्वं पूर्ण मातंगी पुर्णतः
उच्यते "
इससे यह स्पष्ट होता है की मातंगी साधना पूर्णता की साधना
है । जिसने माँ मातंगी को सिद्ध कर लिया फिर उसके जीवन में कुछ अन्य सिद्ध करना
शेष नहीं रह जाता । माँ मातंगी आदि सरस्वती है,जिसपे माँ मातंगी की कृपा होती
है उसे स्वतः ही सम्पूर्ण वेदों, पुरानो, उपनिषदों आदि का ज्ञान हो जाता है
,उसकी वाणी में दिव्यता आ जाती है ,फिर साधक को मंत्र एवं साधना याद करने की
जरुरत नहीं रहती ,उसके मुख से स्वतः ही धाराप्रवाह मंत्र उच्चारण होने लगता है
।दस महाविद्याओं में मातंगी महाविद्या नवम् स्थान पर स्थित है।
"पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार मतंग मुनि ने सभी जीवों को
वश में करने के उद्देश्य से नाना प्रकार के वृक्षों से परिपूर्ण कदम्ब वन में
देवी श्रीविद्या त्रिपुरा की आराधना की। मतंग मुनि के कठिन साधना से सन्तुष्ट
होकर देवी त्रिपुरसुन्दरी ने अपने नेत्रों से एक श्याम वर्ण की सुन्दर कन्या का
रूप धारण किया, जिन्हें राजमातंगिनी कहा गया एवं जो देवी मातंगी का ही एक
स्वरूप हैं। यह दक्षिणाम्नाय तथा पश्चिमाम्नाय की देवी हैं। राजमातंगी, सुमुखी,
वश्यमातंगी तथा कर्णमातंगी इनके नामान्तर हैं। मातंगी के भैरव का नाम मतंग हैं।
ब्रह्मयामल इन्हें मतंग मुनि की कन्या बताता है।"
भगवती मातंगी की
साधना करने वाला उत्तम पुरुष शास्त्र, वेद-वेदांग का ज्ञाता, दैवज्ञ, संगीत एवं
सर्व विद्याओं से सम्पन्न हो जाता है। इनके मन्त्रों से वशीकरण एवं सम्मोहन
कार्यों में शीघ्र सफलता मिलती है। देवताओं से पूजित यह विद्या किसी भी कन्या
के विवाह में उत्पन्न दोषों को समाप्त करती है। इस विद्या के प्रभाव से अन्न-धन
की वृद्धि, वाक् सिद्धि एवं परम सौभाग्य की प्राप्ति होती है। भगवती मातंगी के
कई स्वरूपों की उपासना प्रचलित है।
जब वो बोलता है तो हजारो लाखो की
भीड़ मंत्र मुग्ध सी उसके मुख से उच्चारित वाणी को सुनती रहती है । साधक की
ख्याति संपूर्ण ब्रह्माण्ड में फैल जाती है ।कोई भी उससे शास्त्रार्थ में विजयी
नहीं हो सकता,वह जहाँ भी जाता है विजय प्राप्त करता ही है । मातंगी साधना से
वाक सिद्धि की प्राप्ति होते है, प्रकृति साधक से सामने हाँथ जोड़े खडी रहती
है, साधक जो बोलता है वो सत्य होता ही है । माँ मातंगी साधक को वो विवेक प्रदान
करती है की फिर साधक पर कुबुद्धि हावी नहीं होती,उसे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति
होती है और ब्रह्माण्ड के समस्त रहस्य साधक के सामने प्रत्यक्ष होते ही है ।
माँ
मातंगी को उच्छिष्ट चाण्डालिनी भी कहते है,इस रूप में माँ साधक के समस्त शत्रुओ
एवं विघ्नों का नाश करती है,फिर साधक के जीवन में ग्रह या अन्य बाधा का कोई असर
नहीं होता । जिसे संसार में सब ठुकरा देते है,जिसे संसार में कही पर भी आसरा
नहीं मिलता उसे माँ उच्छिष्ट चाण्डालिनी अपनाती है,और साधक को वो शक्ति प्रदान
करती है जिससे ब्रह्माण्ड की समस्त सम्पदा साधक के सामने तुच्छ सी नजर आती है
।
महर्षि विश्वमित्र ने यहाँ तक कहा है की " मातंगी साधना में बाकि
नव महाविद्याओ का समावेश स्वतः ही हो गया है " । अतः आप भी माँ मातंगी की साधना
को करें जिससे आप जीवन में पूर्ण बन सके ।
माँ मातंगी जी का साधना
जो साधक कर लेता है वह तो गर्व से कह सकता है,मेरा यह अध्यात्मिक जिवन व्यर्थ
नही गया । अगर मैंने स्वयं कभी मातंगी साधना नही की होती तो मुझे सबसे ज्यादा
दुख आनेवाले कई वर्षो तक तकलीफ देता परंतु अध्यात्मिक जिवन के प्रथम पडाव मे ही
मैने मातंगी साधना को इसी विधि-विधान से सम्पन्न कर लिया जो आज आप सभी के लिये
दे रहा हूं।
कौन-कौन मातंगी साधना कर सकता है ?
- जो अपने जीवन में गृहस्थ समस्याओं से कलह कलेश आदि से परेशान हो
- जो कोई मनुष्य किसी भी प्रकार की समस्या से जूझ रहे हैं
- जो आर्थिक तंगी ओर रोग से निजात पाना चाहता हो
- जो तंत्र जादू टोना से पीड़ित है
- जो व्यक्ति अपने जीवन में अद्भुत ज्ञान प्राप्त करना चाहता है और केवल ज्ञान की खोज करना चाहता है उसके लिए यह साधना बहुत ज्यादा उत्तम है।
- जो जो व्यक्ति दिव्य दृष्टि कुंडलिनी जागरण और वाक् सिद्धि प्राप्त करना चाहता है उसके लिए भी यह साधना अति उत्तम है।
- जो व्यक्ति भूत-भविष्य का ज्ञान प्राप्त करना चाहता है
मातंगी साधना कब करें।
मां के भक्त जन साल के किसी भी नवरात्री /गुप्त नवरात्री /अक्षय तृतीया या किसी भी शुभ मुहूर्त या शुक्ल पक्ष में शुरु कर सकते हैं। और मां को प्रसन्न कर सकते हैं।
मातंगी साधना में क्या-क्या सामग्री चाहिए ?
ये साधना रात को पूरे 10 बजे शुरू करे।इस साधना में आपको जो जरूरी सामग्री चाहिए
वो कुछ इस प्रकार है।
मां मातंगी जी की प्रतिमा अगर आपको वो
नहीं मिलती तो आप सुपारी को ही मां का रूप समझ कर उन्हें किसी भी तांबे या कांसे
की थाली में अष्ट दल बना कर उस पर स्थापित करे ओर मां से प्रार्थना करे के मां
मैं आपको नमस्कार करता हूं आप इस सुपारी को अपना रूप स्वीकार करे।
आपको
पहले चोकी को गंगा जल से साफ करना है फिर उस में लाल रंग के कपड़े को बिछाना है
उसके उपर प्लेट लेकर अष्ट दल बना कर सुपारी स्थापित करनी है जो मां की प्रतिमा
स्थापित करना चाहते है वो प्रतिमा स्थापित करे।
गूगल की धूप ,देसी घी
की जोत या दिया,ओर एक तिल के तेल का दिया, 5 मेबा का भोग ओर फल अपनी श्रद्धा
अनुसार मां को भोग लगाने के लिए।कुछ दक्षिणा लौंग इलायची का भोग भी लगाएं मां को।
जाप के लिए लाल मूंगे की माला जो वो नहीं क ले सकते वो रुद्राक्ष की माला ले ओर
गोमुखी ले। माला को साधना से पहले संस्कार जरूर कर ले।
कुमकुम
या रोली, अक्षत ,प्तासे ,पान के नो पत्ते रोज एक पत्ता पान का मां को भोग लगाए जो
समर्थ है मां को पान अर्पित करे तथा एक पान का पत्ता ले, उसमे लौंग इलायची ओर
प्ताहसे रख के मां की प्रतिमा के पास भोग लगाए मां को।
साधना को शुरू
करने से पहले आप संकल्प जरूर ले संकल्प आप जब ले तब हाथ में गंगा जल फूल
मिठाई कुछ पैसे ले ओर अपना नाम गोत्र का नाम स्थान का नाम ओर मनोकामना जो आप पूरी
करने के लिए साधना कर रहे है वो मां से बताए के मां में आपकी साधना
इस मनोकामना पूर्ति के लिए कर रही हूं /रहा हूँ, आप मेरी साधना स्वीकार करे मुझसे
कोई भूल हो जाए तो आप मुझे अपनी शरण में आया बच्चा समझ कर क्षमा करे आप बहुत
दयालु है सबका उधार करती है मां मेरा भी करे। उसके बाद वो जल पैसे मिठाई तिलक
स्थान में छोड़ दे।
यह मैने आप सभी को साधारण विधि बताइ है जो
हर कोई कर सकता है। इस साधना में आपको हो सके तो हर रोज लाल वस्त्र धारण करें
नहीं तो लाल आसान का जरूर इस्तेमाल करे ।
मैने पहले उपरोक्त में आपको
पूजा सामग्री का बता दिया है अब साधना केसे करनी हे ये बताने जा रहा हूं ।
माता मातंगी साधना विधि:-
इस साधना को आपको 12, तारीख को रात 10 बजे शुरू
करना है इस दिन, उत्तर दिशा या पश्चिम दिशा मे मुख करके करना है। पोस्ट मे मातंगी
यंत्र का फोटो प्रदान कर दिया है ,वैसा ही यंत्र भोजपत्र पर कुम्कुम या अष्टगंध के स्याही
से बनाये। वस्त्र आसन लाल रंग का हो,साधना रात्रि मे 10 बजे के बाद करे। नित्य 11
या 21 माला जाप 21 दिनो तक करना चाहिए।
देवि मातंगी वशीकरण की महाविद्या मानी जाती है,इसी मंत्र साधना से वशीकरण क्रिया भी सम्भव है, लेकिन आप से निवेदन है कि आप शक्ती का वशीकरण में काम न ले।
22 वे दिन कम से कम घी की 108
आहूति हवन मे अर्पित करे ओर अगर हवन नहीं कर सकते तो दशांश जाप करे ये सब आप
संकल्प में निर्धारित कर ले दशांश जाप करना है या हवन क्यों लोग पैसों की कमी से
नहीं कर पाते तो वो जाप ही करे। इस तरह से साधना पुर्ण होती है।23 वे दिन भोजपत्र
पर बनाये हुए यंत्र को चांदि के तावीज मे डालकर पहेन ले,यह एक दिव्य कवच माना
जाता है।अक्षय तृतीया के दिन ''मातंगी जयंती'' होती है और वैशाख पूर्णिमा
''मातंगी सिद्धि दिवस'' होता है। जो साधक चाहे तो इस साधना को लगातार 41 दिन भी
कर सकता है ओर 42 वे दिन दासंश हवन करे जो हवन नहीं कर सकते वो लोग दशांश जाप
करे। ये आप पर निर्भर है आप कितने दिन करना चाहते है ओर कितने जाप का संकल्प लेते
है।
सबसे पहले साधक संक्षिप्त गुरुपूजन सम्पन्न करें और गुरुमन्त्र का
1 माला जाप करें। फिर गुरु जी से मातंगी हृदय साधना सम्पन्न करने
के लिए मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लें और उनसे साधना की पूर्णता एवं सफलता के लिए
निवेदन करें। जिन लोगों ने गुरु दीक्षा नहीं ले रखी वो किसी भी शिवालय में जाकर भगवान शिव जी के सामने संकल्प लेकर उन्हें अपना गुरु बनाए
ओर उनका कोई भी मंत्र गुरु मंत्र समझ कर जाप करे। मैं यह मंत्र दे रहा हूं आप ये
भी जाप कर सकते है।
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरः,
गुरुर साक्षात परमब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः।
ॐ नमह शिवाय / om
namah shiwaye
इसके बाद भगवान को गुरु मानकर उनसे साधना की आज्ञा ले।
इसके बाद गणपति पूजन करे और एक माला "ओम् वक्रतुण्डाय हुम्"
मन्त्र का जाप करें और गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए
प्रार्थना करें।
तत्पश्चात साधक क्षेत्र के अधिपति भगवान भैरवनाथजी का
स्मरण करके एक माला "ॐ हूं भ्रं हूं मतंग भैरवाय नमः" मन्त्र का जाप करें और
भैरवनाथजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए निवेदन करें।
इसके बाद साधक साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लें।
साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि-
“मैं अमुक नाम का साधक गोत्र
अमुक आज से श्री मातंगी हृदय साधना का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य 21
दिनों तक 11 (अपनी सुविधा के अनुसार) माला मन्त्र जाप करूँगा। माँ मेरी साधना को
स्वीकार कर मुझे मन्त्र की सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर
स्थापित कर दे।
संकल्प में जाप की कितनी संख्या करेंगे और किस उद्देश्य से कर रहे
हैं, मां से बोल दे।
संकल्प लेने के बाद माँ भगवती मातंगी का
पूजन कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य आदि से सामान्य पूजन करें।फिर
निम्न विनियोग मन्त्र का उच्चारण करके एक आचमनी जल भूमि पर छोड़ दें -----
विनियोग:
अस्य
मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषि विराट् छन्दः मातंगी देवता ह्रीं बीजं हूं शक्तिः
क्लीं कीलकं सर्वाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यास
:-----
ॐ दक्षिणामूर्ति ऋषये नमः
शिरसि। (सिर को स्पर्श करें)
विराट्
छन्दसे नमः
मुखे।
(मुख को स्पर्श करें)
मातंगी देवतायै नमः
हृदि। (हृदय
को स्पर्श करें)
ह्रीं बीजाय नमः
गुह्ये।
(गुह्य स्थान को स्पर्श करें)
हूं शक्तये नमः
पादयोः।
(पैरों को स्पर्श करें)
क्लीं कीलकाय नमः
नाभौ। (नाभि
को स्पर्श करें)
विनियोगाय नमः
सर्वांगे।
(सभी अंगों को स्पर्श करें)
करन्यास :-----
ॐ
ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।
(दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)
ॐ ह्रीं
तर्जनीभ्यां नमः। (दोनों
अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रूं
मध्यमाभ्यां नमः। (दोनों
अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रैं
अनामिकाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से
दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां
नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को
स्पर्श करें)
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। (परस्पर दोनों हाथों को
स्पर्श करें)
हृदयादिन्यास :-----
ॐ ह्रां
हृदयाय नमः। (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ
ह्रीं शिरसे स्वाहा। (सिर को स्पर्श करें)
ॐ
ह्रूं शिखायै वषट्। (शिखा को स्पर्श करें)
ॐ
ह्रैं कवचाय हूं। (भुजाओं को
स्पर्श करें)
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय
वौषट्। (नेत्रों को स्पर्श करें)
ॐ
ह्रः अस्त्राय फट्। (सिर से घूमाकर तीन बार
ताली बजाएं)
ध्यानः
ॐ ध्यायेयं रत्नपीठे शुककलपठितं
शृण्वतीं श्यामलाङ्गीं।
न्यस्तैकाङ्घ्रिं सरोजे शशिशकलधरां वल्लकीं
वादयन्तीम्।
कह्लाराबद्धमालां नियमितविलसच्चोलिकां रक्तवस्त्रां
मातङ्गीं
शङ्खपात्रां मधुरमधुमदां चित्रकोद्भासिभालाम्॥
"यह श्रीं
दुर्गासप्तशती के सप्तम अध्याय में, ध्यान में वर्णित माँ मातंगी का ध्यान मंत्र
है"
ओर
ॐ श्यामांगी शशिशेखरां त्रिनयनां वेदैः
करैर्विभ्रतीं,
पाशं खेटमथांकुशं दृढमसिं नाशाय भक्तद्विषाम्
।
रत्नालंकरणप्रभोज्जवलतनुं भास्वत्किरीटां शुभां
मातंगी
मनसा स्मरामि सदयां सर्वाथसिद्धिप्रदाम् ।।
मंत्रः
।।
ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा ।।
(om hreem kleem hoom
matangei phat swaahaa)
रोज की माला जाप हो जाने के बाद आप अपना जाप
देवी मां मातंगी जी को समर्पित करे मंत्र दे रहा हूं वो बोलकर जाप समर्पित करे
।
जाप समर्पण मंत्र -
गुह्याति-गुह्य-गोप्त्री-त्वं
गृहाणास्मितकृतम्
जपं।
सिद्धिर्भवतु मे देवी
त्वत्प्रसादान्मयि स्थिरा ||
guhyaati guhya goptri tvam gruhaanaasmat kritam japam
siddhirbhavatu
may devi tvatprasaadanmayi sthira
ये मंत्र साधना अत्यंत तीव्र
मंत्र है । मातंगी महाविद्या साधना प्रयोग सर्वश्रेष्ठ साधना है जो साधक के जिवन
को भाग्यवान बना देती है। मंत्र जाप के बाद अवश्य ही कवच का एक पाठ करे।
मातंगी
कवच
।। श्रीदेव्युवाच ।।
साधु-साधु महादेव,
कथयस्व सुरेश्वर
मातंगी-कवचं दिव्यं, सर्व-सिद्धि-करं नृणाम् ।।
।। श्री ईश्वर
उवाच ।।
श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि, मातंगी-कवचं शुभं ।
गोपनीयं
महा-देवि, मौनी जापं समाचरेत् ।।
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीमातंगी-कवचस्य
श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषिः । विराट् छन्दः । श्रीमातंगी देवता ।
चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः-
श्री
दक्षिणा-मूर्तिः ऋषये नमः शिरसि ।
विराट् छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीमातंगी
देवतायै नमः हृदि ।
चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे
।
।। मूल कवच-स्तोत्र ।।
ॐ शिरो मातंगिनी
पातु, भुवनेशी तु चक्षुषी ।
तोडला कर्ण-युगलं, त्रिपुरा वदनं मम ।।
पातु
कण्ठे महा-माया, हृदि माहेश्वरी तथा ।
त्रि-पुष्पा पार्श्वयोः पातु,
गुदे कामेश्वरी मम ।।
ऊरु-द्वये तथा चण्डी, जंघयोश्च हर-प्रिया ।
महा-माया
माद-युग्मे, सर्वांगेषु कुलेश्वरी ।।
अंग प्रत्यंगकं चैव, सदा रक्षतु
वैष्णवी ।
ब्रह्म-रन्घ्रे सदा रक्षेन्, मातंगी नाम-संस्थिता ।।
रक्षेन्नित्यं
ललाटे सा, महा-पिशाचिनीति च ।
नेत्रयोः सुमुखी रक्षेत्, देवी रक्षतु
नासिकाम् ।।
महा-पिशाचिनी पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा ।
लज्जा
रक्षतु मां दन्तान्, चोष्ठौ सम्मार्जनी-करा ।।
चिबुके कण्ठ-देशे च,
ठ-कार-त्रितयं पुनः ।
स-विसर्ग महा-देवि हृदयं पातु सर्वदा
।।
नाभि रक्षतु मां लोला, कालिकाऽवत् लोचने ।
उदरे पातु
चामुण्डा, लिंगे कात्यायनी तथा ।।
उग्र-तारा गुदे पातु, पादौ रक्षतु
चाम्बिका ।
भुजौ रक्षतु शर्वाणी, हृदयं चण्ड-भूषणा ।।
जिह्वायां
मातृका रक्षेत्, पूर्वे रक्षतु पुष्टिका ।
विजया दक्षिणे पातु, मेधा
रक्षतु वारुणे ।।
नैर्ऋत्यां सु-दया रक्षेत्, वायव्यां पातु लक्ष्मणा
।
ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी, मातंगी शुभकारिणी ।।
रक्षेत्
सुरेशी चाग्नेये, बगला पातु चोत्तरे ।
ऊर्घ्वं पातु महा-देवि
देवानां हित-कारिणी ।।
पाताले पातु मां नित्यं, वशिनी विश्व-रुपिणी
।
प्रणवं च ततो माया, काम-वीजं च कूर्चकं ।।
मातंगिनी
ङे-युताऽस्त्रं, वह्नि-जायाऽवधिर्पुनः ।
सार्द्धेकादश-वर्णा सा,
सर्वत्र पातु मां सदा ।।
इसके बाद फल श्रुति करे।
फल-श्रुति
।।
इति ते कथितं देवि गुह्यात् गुह्य-तरं परमं ।
त्रैलोक्य-मंगलं
नाम, कवचं देव-दुर्लभम् ।।
यः इदं प्रपठेत् नित्यं, जायते सम्पदालयं
।
परमैश्वर्यमतुलं, प्राप्नुयान्नात्र संशयः ।।
गुरुमभ्यर्च्य
विधि-वत्, कवचं प्रपठेद् यदि ।
ऐश्वर्यं सु-कवित्वं च, वाक्-सिद्धिं
लभते ध्रुवम् ।।
नित्यं तस्य तु मातंगी, महिला मंगलं चरेत् ।
ब्रह्मा
विष्णुश्च रुद्रश्च, ये देवा सुर-सत्तमाः ।।
ब्रह्म-राक्षस-वेतालाः,
ग्रहाद्या भूत-जातयः ।
तं दृष्ट्वा साधकं देवि लज्जा-युक्ता
भवन्ति ते ।।
कवचं धारयेद् यस्तु, सर्वां सिद्धि लभेद् ध्रुवं ।
राजानोऽपि
च दासत्वं, षट्-कर्माणि च साधयेत् ।।
सिद्धो भवति सर्वत्र,
किमन्यैर्बहु-भाषितैः ।
इदं कवचमज्ञात्वा, मातंगीं यो भजेन्नरः ।।
अल्पायुर्निधनो
मूर्खो, भवत्येव न संशयः ।
गुरौ भक्तिः सदा कार्या, कवचे च दृढा मतिः
।।
तस्मै मातंगिनी देवी, सर्व-सिद्धिं प्रयच्छति ।।
आशा
है कि ये साधना आपके समस्त कार्य सिद्ध करेगी कृपया इस साधना को पूर्ण
विश्वास से करे । मां आप सबका कल्याण करे। मां आप सभी की मनोकामना पूर्ण करे।
यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा के समय माता के मंत्र का एक माला जप करें।
धन्यवाद
।
जय माता मातंगी की।
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