नमस्कार मित्रों
मित्रों ज्योतिष में बहुत सारे लोगों की रूचि है। और बहुत सारे लोग ज्योतिष को भूलते भी जा रहे हैं बहुत सारे लोग ज्योतिष को केवल एक अंधविश्वास की तरह देखते हैं। लेकिन ज्योतिष विद्या जो है सच में ही बहुत ही प्राचीन और बहुत ही शक्तिशाली विद्या है।
हमारे प्राचीन भारत में इस विद्या को बहुत महत्व दिया जाता था आज भी बहुत से लोग उसको बहुत ज्यादा महत्व देते हैं। और इसके बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं।
ज्योतिष विद्या का एक छोटा सा परिचय आप सभी लोगों के सामने प्रस्तुत किया है और कुछ पुस्तकें भी उपलब्ध करवाई हैं। तो आप जरूर ज्योतिष विद्या संबंधी जानकारी पढ़े और जो पुस्तकें दी गई हैं उन्हें भी जरूर प्राप्त कीजिए वह बिल्कुल निशुल्क है।
ज्योतिष या ज्यौतिष विषय वेदों जितना ही प्राचीन है। प्राचीन काल में ग्रह, नक्षत्र और अन्य खगोलीय पिण्डों का अध्ययन करने के विषय को ही ज्योतिष कहा गया था। इसके गणित भाग के बारे में तो बहुत स्पष्टता से कहा जा सकता है कि इसके बारे में वेदों में स्पष्ट गणनाएं दी हुई हैं। फलित भाग के बारे में बहुत बाद में जानकारी मिलती है।
भारतीय आचार्यों द्वारा रचित ज्योतिष की पाण्डुलिपियों की संख्या एक लाख से भी अधिक है।
प्राचीनकाल में गणित एवं ज्यौतिष समानार्थी थे परन्तु आगे चलकर इनके तीन भाग हो गए।
(१) तन्त्र या सिद्धान्त - गणित द्वारा ग्रहों की गतियों और नक्षत्रों का ज्ञान प्राप्त करना तथा उन्हें निश्चित करना।
(२) होरा - जिसका सम्बन्ध कुण्डली बनाने से था। इसके तीन उपविभाग थे । क- जातक, ख- यात्रा, ग- विवाह ।
(३) शाखा - यह एक विस्तृत भाग था जिसमें शकुन परीक्षण, लक्षणपरीक्षण एवं भविष्य सूचन का विवरण था।
इन तीनों स्कन्धों ( तन्त्र-होरा-शाखा ) का जो ज्ञाता होता था उसे 'संहितापारग' कहा जाता था।
तन्त्र या सिद्धान्त में मुख्यतः दो भाग होते हैं, एक में ग्रह आदि की गणना और दूसरे में सृष्टि-आरम्भ, गोल विचार, यन्त्ररचना और कालगणना सम्बन्धी मान रहते हैं। तंत्र और सिद्धान्त को बिल्कुल पृथक् नहीं रखा जा सकता । सिद्धान्त, तन्त्र और करण के लक्षणों में यह है कि ग्रहगणित का विचार जिसमें कल्पादि या सृष्टयादि से हो वह सिद्धान्त, जिसमें महायुगादि से हो वह तन्त्र और जिसमें किसी इष्टशक से (जैसे कलियुग के आरम्भ से) हो वह करण कहलाता है । मात्र ग्रहगणित की दृष्टि से देखा जाय तो इन तीनों में कोई भेद नहीं है। सिद्धान्त, तन्त्र या करण ग्रन्थ के जिन प्रकरणों में ग्रहगणित का विचार रहता है वे क्रमशः इस प्रकार हैं-
१-मध्यमाधिकार २–स्पष्टाधिकार ३-त्रिप्रश्नाधिकार ४-चन्द्रग्रहणाधिकार ५-सूर्यग्रहणाधिकार
६-छायाधिकार ७–उदयास्ताधिकार ८-शृङ्गोन्नत्यधिकार ९-ग्रहयुत्यधिकार १०-याताधिकार
'ज्योतिष' से निम्नलिखित का बोध हो सकता है-
1. वेदाङ्ग ज्योतिष
2. सिद्धान्त ज्योतिष या 'गणित ज्योतिष' (Theoretical astronomy)
3. फलित ज्योतिष (Astrology)
4. अंक ज्योतिष (numerology)
5. खगोल शास्त्र (Astronomy)
भारतीय आर्यो में ज्योतिष विद्या का ज्ञान अत्यन्त प्राचीन काल से था । यज्ञों की तिथि आदि निश्चित करने में इस विद्या का प्रयोजन पड़ता था । अयन चलन के क्रम का पता बराबर वैदिक ग्रंथों में मिलता है । जैसे, पुनर्वसु से मृगशिरा (ऋगवेद), मृगशिरा से रोहिणी (ऐतरेय ब्राह्मण), रोहिणी से कृत्तिका (तौत्तिरीय संहिता) कृत्तिका से भरणी (वेदाङ्ग ज्योतिष) । तैत्तरिय संहिता से पता चलता है कि प्राचीन काल में वासंत विषुवद्दिन कृत्तिका नक्षत्र में पड़ता था । इसी वासंत विषुवद्दिन से वैदिक वर्ष का आरम्भ माना जाता था, पर अयन की गणना माघ मास से होती थी । इसके बाद वर्ष की गणना शारद विषुवद्दिन से आरम्भ हुई । ये दोनों प्रकार की गणनाएँ वैदिक ग्रंथों में पाई जाती हैं । वैदिक काल में कभी वासंत विषुवद्दिन मृगशिरा नक्षत्र में भी पड़ता था । इसे बाल गंगाधर तिलक ने ऋग्वेद से अनेक प्रमाण देकर सिद्ध किया है । कुछ लोगों ने निश्चित किया है कि वासंत विषुबद्दिन की यह स्थिति ईसा से ४००० वर्ष पहले थी । अतः इसमें कोई संदेह नहीं कि ईसा से पाँच छह हजार वर्ष पहले हिंदुओं को नक्षत्र अयन आदि का ज्ञान था और वे यज्ञों के लिये पत्रा बनाते थे। शारद वर्ष के प्रथम मास का नाम अग्रहायण था जिसकी पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र में पड़ती थी । इसी से कृष्ण ने गीता में कहा है कि 'महीनों में मैं मार्गशीर्ष हूँ' ।
प्राचीन हिंदुओं ने ध्रुव का पता भी अत्यन्त प्राचीन काल में लगाया था । अयन चलन का सिद्धान्त भारतीय ज्योतिषियों ने किसी दूसरे देश से नहीं लिया; क्योंकि इसके संबंध में जब कि युरोप में विवाद था, उसके सात आठ सौ वर्ष पहले ही भारतवासियों ने इसकी गति आदि का निरूपण किया था। वराहमिहिर के समय में ज्योतिष के सम्बन्ध में पाँच प्रकार के सिद्धांत इस देश में प्रचलित थे - सौर, पैतामह, वासिष्ठ, पौलिश ओर रोमक । सौर सिद्धान्त संबंधी सूर्यसिद्धान्त नामक ग्रंथ किसी और प्राचीन ग्रंथ के आधार पर प्रणीत जान पड़ता है । वराहमिहिर और ब्रह्मगुप्त दोनों ने इस ग्रंथ से सहायता ली है । इन सिद्धांत ग्रंथों में ग्रहों के भुजांश, स्थान, युति, उदय, अस्त आदि जानने की क्रियाएँ सविस्तर दी गई हैं । अक्षांश और देशातंर का भी विचार है ।
पूर्व काल में देशान्तर लंका या उज्जयिनी से लिया जाता था । भारतीय ज्योतिषी गणना के लिये पृथ्वी को ही केंद्र मानकर चलते थे और ग्रहों की स्पष्ट स्थिति या गति लेते थे । इससे ग्रहों की कक्षा आदि के संबंध में उनकी और आज की गणना में कुछ अन्तर पड़ता है । क्रांतिवृत्त पहले २८ नक्षत्रों में ही विभक्त किया गया था । राशियों का विभाग पीछे से हुआ है । वैदिक ग्रंथों में राशियों के नाम नहीं पाए जाते । इन राशियों का यज्ञों से भी कोई संबंध नहीं हैं । बहुत से विद्वानों का मत है कि राशियों और दिनों के नाम यवन (युनानियों के) संपर्क के पीछे के हैं । अनेक पारिभाषिक शब्द भी यूनानियों से लिए हुए हैं, जैसे,— होरा, दृक्काण केंद्र, इत्यादि ।
और मित्रों देकर ज्योतिष से संबंधित बहुत ही रोचक पुस्तक हम आपको यहां पर उपलब्ध करवा रहे हैं। कई पुस्तकें हैं जो आपको उपलब्ध करवाएंगे जिनको आप प्राप्त कर सकते हैं।
हमारे ब्लॉक के द्वारा हम आपको अंक ज्ञान, हस्तरेखा विज्ञान और ज्योतिष से संबंधित पुस्तकें उपलब्ध करवाएंगे। इसलिए आप हमारे ब्लॉक को जरूर फॉलो कर लीजिए और यहां पर हम आपको नीचे लिंक भी उपलब्ध करवा रहे हैं उनके ऊपर क्लिक करके आप सीधे इन पुस्तकों को प्राप्त कर सकते हैं। अभी केवल इतनी ही पुस्तक उपलब्ध करवाइए लेकिन आगे और भी पुस्तके उपलब्ध करवाई जाएंगी।
इसलिए आप हमारे ब्लॉग से जुड़िए और इसे फॉलो करिए। जिससे कि जब भी उपलब्ध करवाए तो आपको मिल सके और आप हमारे फेसबुक ग्रुप, टेलीग्राम चैनल और यूट्यूब चैनल पर भी जुड़िए। जिससे कि अगर यहां पर आपको सूचना नहीं मिल सके तो वहां पर आपको तुरंत सूचना मिल जाए और आपको पुस्तक प्राप्त हो जाए।
ज्योतिष विज्ञान को लोग भूलते जा रहे हैं इसके प्रति लोगों की रुचि अब खत्म हो रही है और बहुत सारे लोग ज्योतिष विज्ञान के नाम पर लोगों को ठगने का कार्य कर रहे हैं तो इससे बचने के लिए ही हमने आपको यह पुस्तकें उपलब्ध करवाने का कार्य शुरू किया है तो आप लोग इसे जरूर अपना सहयोग प्रदान कीजिए और और अगर आपको भी किसी भी प्रकार की पुस्तक चाहिए तो आप हमें नीचे कमेंट करके बता सकते हैं।
कृपया करके हमने लोगों को भी ब्लॉक से जरूर जोड़ें।
सूचना: अगर इस पेज पर दी हुई सामग्री से सम्बंधित कोई भी सुझाव, शिकायत या डाउनलोड नही हो रहे हो तो निचे दिए गए "Contact Us” के माध्यम से सूचित करें। हम आपके सुझाव या शिकायत पर जल्द से जल्द अमल करेंग:
👁 ध्यान देंः
तो मित्रौ हमें उम्मीद है, कि आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई होगी। और यदि पोस्ट पसंद आई है, तो इसे अपने दोस्तों में शेयर करें ताकि आपके दोस्तों को भी इस पोस्ट के बारे में पता चल सके। और नीचे कमेंट करें, कि आपको हमारी यह पोस्ट कैसी लगी। यदि आपका कोई प्रश्न है, तो नीचे 👇 Comment बॉक्स में हमें बताएं।
यह भी पढ़ेंः धरती में गड़ा धन पाने का सबसे सरल और 100% कारगर उपाय।। "
" शाबर मंत्र सागर भाग-२ पुस्तक PDF Download;"
कृपया हमारे चैनल को सब्सक्राइब करके 👉 यह भी पढ़ेंः धरती में गड़ा धन पाने का सबसे सरल और 100% कारगर उपाय।। "
" शाबर मंत्र सागर भाग-२ पुस्तक PDF Download;"
आप हमसे हमारे फेसबुक ग्रुप और टेलीग्राम ग्रुप में जुड़ सकते हैं। और हमारे ब्लॉग से जुड़ कर भी हमें सहयोग प्रदान कर सकते हो।
फेसबुक ग्रुप - https://www.facebook.com/groups/715119132723959
टेलीग्राम ग्रप - https://t.me/shreerampriwar
हमरा चैनल - https://www.youtube.com/c/ShreeRamPriwar
अगर आपको हमारा कार्य अच्छा लग रहा है तो हमें सहयोग प्रदान करें और जो भी वीडियो देखे उसे कृपा करके पूरा देखें।
पुस्तक - Download
पासवर्ड - Password
अगर अभी तक आपने हमारे चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया तो कृपया करके सब्सक्राइब करें।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
🌹🏵️ ।।जय मां भवानी।।
#शाबर_मंत्र_सागर #मंत्र_पुस्तक #मंत्र #साधना_पुस्तके #साधना_विधि #मंत्र_साधना
#जय_श्री_राम
0 टिप्पणियाँ