श्री विद्या साधना की जानकारी एवं एक अद्भुत पुस्तक बिल्कुल फ्री में प्राप्त करें

श्रीविद्या गायत्री का अत्यंत गुप्त रूप है। यह चार वेदों में भी अत्यंत गुप्त है। प्रचलित गायत्री के स्पष्ट और अस्पष्ट दोनों प्रकार हैं। इसके तीन पाद स्पष्ट है, चतुर्थ पाद अस्पष्ट है। गायत्री, वेद का सार है। वेद चतुर्दश विद्याओं का सार है। इन विद्याओं से शक्ति का ज्ञान प्राप्त होता है। कादी विद्या अत्यंत गोपनीय है। इसका रहस्य गुरू के मुख से ग्रहण योग्य है। सम्मोहन तंत्र के अनुसार तारा, तारा का साधक, कादी तथा हादी दोनों मत से संश्लिष्ट है। हंस तारा, महाविद्या, योगेश्वरी कादियों की दृष्टि से काली, हादियों की दृष्टि से शिवसुदरी और कहादी उपासकों की दृष्टि से हंस है। श्रीविद्यार्णव के अनुसार कादी मत मधुमती है। यह त्रिपुरा उपासना का प्रथम भेद है। दूसरा मत मालिनी मत (काली मत) है। कादी मत का तात्पर्य है जगत चैतन्य रूपिणी मधुमती महादेवी के साथ अभेदप्राप्ति। काली मत का स्वरूप है विश्वविग्रह मालिनी महादेवी के साथ तादात्म्य होना। दोनों मतों का विस्तृत विवरण श्रीविद्यार्णव में है। 

श्री विद्या देवी ललिता त्रिपुरसुन्दरी से सम्बन्धित तन्त्र विद्या का हिन्दू सम्प्रदाय है। ललितासहस्रनाम में इनके एक सहस्र (एक हजार) नामों का वर्णन है। ललितासहस्रनाम में श्रीविद्या के संकल्पनाओं का वर्णन है। श्रीविद्या सम्प्रदाय आत्मानुभूति के साथ-साथ भौतिक समृद्धि को भी जीवन के लक्ष्य के रूप में स्वीकार करता है।

श्रीविद्या का साहित्य विशाल है। ऋग्वेद मैं श्रीसूक्त मैं श्रीदेवी मतलब महालक्ष्मी जो परमेश्वरि के उपासना किया जाता हैं। ए ही वैदिक श्रीविद्या हैं।

श्रीविद्या के भैरव हैं- त्रिपुर भैरव (देव शक्ति संगमतंत्र)। महाशक्ति के अनन्त नाम और अनन्त रूप हैं। इनका परमरूप एक तथा अभिन्न हैं। त्रिपुरा उपासकों के मतानुसार ब्रह्म आदि देवगण त्रिपुरा के उपासक हैं। उनका परमरूप इंद्रियों तथा मन के अगोचर है। एकमात्र मुक्त पुरूष ही इनका रहस्य समझ पाते हैं। यह पूर्णाहंतारूप तथा तुरीय हैं। देवी का परमरूप वासनात्मक है, सूक्ष्मरूप मंत्रात्मक है, स्थूलरूप कर-चरणादि-विशिष्ट है।




श्रीविद्या के उपासकों में प्रथम स्थान काम (मन्मथ) का है। यह देवी गुह्य विद्या प्रवर्तक होने के कारण विश्वेश्वरी नाम से प्रसिद्ध हैं। देवी के बारह मुख और नाम प्रसिद्ध हैं, यथा- मनु, चंद्र, कुबेर, लोपामुद्रा, मन्मथ, अगस्त्य, अग्नि, सूर्य, इंद्र, स्कंद, शिव, क्रोध भट्टारक (या दुर्वासा)। इन लोगों ने श्रीविद्या की साधना से अपने अधिकार के अनुसार पृथक् फल प्राप्त किया था।श्री विद्या के जो प्रायः लुप्तप्राय मत है वो आज भी प्राचीनतम आगम मठ में पूर्णतः प्रचलित है ऐसा भी कहा जाता है कि भारत के पाँच भागो में पाँच मठ पूर्व में असम और अरूणाचल पश्चिम मे गुजरात उत्तर मे हिमालय दक्षिण मे कन्याकुमारी और मध्य मे मध्य प्रदेश में है।

 

श्रीविद्या विषयक कुछ ग्रंथ ये हैं-


1. तंत्रराज - इसकी बहुत टीकाएँ हैं। सुभगानन्दनाथ कृत मनोरमा मुख्य है। इसपर प्रेमनिधि की सुदर्शिनी नामक टीका भी है। भाष्स्कर की और शिवराम की टीकाएँ भी मिलती हैं।

2. तंत्रराजोत्तर

3. परानन्द या परमानन्दतंत्र - किसी किसी के अनुसार यह श्रीविद्या का मुख्य उपासनाग्रंथ है। इसपर सुभगानंद की सुभगानंद संदोह नाम्नी टीका थ। कल्पसूत्र वृत्ति से मालूम होता है कि इसपर और भी टीकाएँ थी।

4. सौभाग्यकल्पद्रुम - परमानंद के अनुसार यह श्रेष्ठ ग्रंथ है।

5. सौभाग्य कल्पल

तिका (क्षेमानन्द कृत)

6. वामकेश्वर तंत्र (पूर्वचतु:शती और उत्तर चतु:शती) इसपर भास्कर की सेतुबंध टीका प्रसिद्ध है। जयद्रथ कृत वामकेश्वर विवरण भी है।

7. ज्ञानार्णव- यह 26 पटल में है।

8-9. श्रीक्रमसंहिता तथा वृहदश्रीक्रमसंहिता।

10. दक्षिणामूर्त्ति संहिता - यह 66 पटल में है।

11. स्वच्छंद तंत्र अथवा स्वच्छंद संग्रह।

12. कालात्तर वासना - सौभाग्य कल्पद्रुप में इसकी चर्चा आई है।

13. त्रिपुरार्णव।

14. श्रीपराक्रम - इसका उल्लेख योगिनी-हृदय-दीपका में है।

15. ललितार्चन चंद्रिका - यह 17 अध्याय में है।

16. सौभाग्य तंत्रोत्तर

17. मातृकार्णव

18. सौभाग्य रत्नाकर: (विद्यानंदनाथ कृत)

19. सौभाग्य सुभगोदय - (अमृतानंदनाथ कृत)

20. शक्तिसंगम तंत्र- (सुंदरी खंड)

21. त्रिपुरा रहस्य - (ज्ञान तथा माहात्म्य खंड)

22. श्रीक्रमात्तम - (निजपकाशानंद मल्लिकार्जुन योगींद्र कृत)

23. अज्ञात अवतार - इसका उल्लेख योगिनी हृदय दीपिका में हैं।

24-25. सुभगार्चापारिजात, सुभगार्चारत्न: सौभाग्य भास्कर में इनका उल्लेख है।

26. चंद्रपीठ

27. संकेतपादुका

28. सुंदरीमहोदय - शंकरानंदनाथा कृत

29. हृदयामृत- (उमानंदनाथ कृत)

30. लक्ष्मीतंत्र: इसें त्रिपुरा माहात्म्य है।

31. ललितोपाख्यान - यह ब्रह्मांड पुराण के उत्तरखंड में है।

32. त्रिपुरासार समुच्चय (लालूभट्ट कृत)

33. श्री तत्वचिंतामणि (पूर्णानंदकृत)

34. विरूपाक्ष पंचाशिका

35. कामकला विलास

36. श्री विद्यार्णव

37. शाक्त क्रम (पूर्णानन्दकृत)

38. ललिता स्वच्छंद

39. ललिताविलास

40. प्रपंचसार (शंकराचार्य कृत)

41. सौभाग्यचंद्रोदय (भास्कर कृत)

42. बरिबास्य रहस्य: (भास्कर कृत)

43. बरिबास्य प्रकाश (भास्कर कृत)

44. त्रिपुरासार

45. सौभाग्य सुभगोदय: (विद्यानन्द नाथ कृत)

46. संकेत पद्धति

47. परापूजाक्रम

48. चिदंबर नट।



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