होरा शास्त्र: ज्योतिष का महत्वपूर्ण अंग
भारतीय ज्योतिष शास्त्र अत्यंत विस्तृत और गूढ़ है, जिसमें व्यक्ति के जीवन से जुड़ी अनेक गूढ़ताओं का विवेचन किया गया है। इस शास्त्र को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया गया है — संहिता, सिद्धांत और होरा। इन तीनों में से "होरा शास्त्र" वह अंग है जो व्यक्ति के जीवन के दैनिक, वार्षिक और संपूर्ण काल चक्र के फलादेश से संबंधित है।
होरा शास्त्र की परिभाषा
"होरा" शब्द संस्कृत से लिया गया है, जो "अहोरात्र" (अह: दिन और रात्रि) से बना है। अहोरात्र से ‘अ’ और ‘त्रि’ हटाने पर "होरा" शब्द बनता है। इसका अर्थ होता है — समय की वह इकाई जिससे किसी घटना या फल का पूर्वानुमान किया जा सके।
होरा शास्त्र का महत्व
होरा शास्त्र विशेष रूप से फलित ज्योतिष से संबंधित होता है। यह जन्म कुंडली, ग्रहों की स्थिति, नक्षत्र, राशि, दशा और गोचर के माध्यम से मनुष्य के जीवन में घटित होने वाली घटनाओं का विश्लेषण करता है। इसके माध्यम से जातक के जीवन में आने वाली बाधाओं, शुभ-अशुभ समय, विवाह, संतान, स्वास्थ्य, नौकरी, व्यापार आदि की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
प्रमुख घटक
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लग्न – किसी व्यक्ति के जन्म के समय पूर्व दिशा में कौन-सी राशि उदय हो रही थी, उसे लग्न कहते हैं। यह कुंडली का पहला घर होता है और जातक की शारीरिक संरचना, स्वभाव और जीवन की दिशा को प्रभावित करता है।
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दशा प्रणाली – होरा शास्त्र में दशा प्रणाली का विशेष महत्व है। इसमें "विंशोत्तरी दशा", "अष्टोत्तरी दशा" आदि के माध्यम से व्यक्ति के जीवन में किस समय कौन-सा ग्रह प्रभावी होगा, यह बताया जाता है।
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गोचर – गोचर का तात्पर्य है ग्रहों की वर्तमान स्थिति। होरा शास्त्र में यह देखा जाता है कि वर्तमान समय में ग्रहों की चाल जातक की कुंडली पर कैसा प्रभाव डाल रही है।
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प्रश्न कुंडली – जब जन्म का समय ज्ञात न हो, तब प्रश्न के आधार पर कुंडली बनाई जाती है। यह भी होरा शास्त्र की एक शाखा है।
होरा शास्त्र का व्यावहारिक उपयोग
आधुनिक जीवन में भी होरा शास्त्र अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो रहा है। लोग शुभ मुहूर्त, विवाह, संतान जन्म, व्यापार की शुरुआत, यात्रा, भवन निर्माण, आदि कार्यों के लिए होरा शास्त्र का परामर्श लेते हैं। यह विज्ञान न केवल भविष्यवाणी करता है, बल्कि व्यक्ति को सतर्क भी करता है।
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