तन्त्र प्रयोग ?
आज जबकि तन्त्र तथा तान्त्रिक को पढ़े लिखे लोग धोखा, पाखण्ड तथा अन्धविश्वास कहते हैं तो तन्त्र प्रयोग लिखने का औचित्य क्या ?
आप जब किसी को कोई चीज दिखाना चाहते हैं या उसे समझाना चाहते हैं यदि वह व्यक्ति उस विषय की गहरायी या उस चीज की विशेषता को नहीं जानता इसलिए वह आपका, आपकी चीज का तथा आपकी बात का मजाक उड़ाता है, व्यंग्य बाण छोड़ता है तथा अन्धविश्वास कहता है। यही स्थिति पढ़े-लिखे लोगों की हो गयी है। जिस पश्चिमी सभ्यता के पीछे यह लोग दौड़ते हुए जिस तन्त्र को पाखण्ड तथा अन्धविश्वास कहते हैं, उसी तन्त्र को पाश्चात्य लोग अपने जीवन में उतार रहे हैं। वहाँ पर इस विषय पर विस्तार से अनुसन्धान चल रहा है। यदि वह लोग पाखण्ड कर रहे हैं या अन्धविश्वास पर जीने जा रहे हैं तो यह उचित नहीं कि आप उनकी सभ्यता अपनायें। यह जानकर भी यदि आप पश्चिमी सभ्यता के दीवाने हैं तो भगवान जाने कौन कितना दोषी है।
हम भारतीय पढ़-लिख करके पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करते हुए तन्त्र तथा तान्त्रिक को गाली देते हैं। जबकि इसी विषय को पश्चिम वालों ने विज्ञान के रूप में स्वीकार कर लिया है। कितनी विडम्बना है हम भारतवासियों के लिये कि हम भारतीय होकर भारतीय पुरातन विद्या को गाली देते हैं जबकि इसी विद्या ने विदेशी विद्वानों को आकर्षित कर रखा है।
तन्त्र पर श्री यशपाल जी के विचार
* तन्त्र किसी विषय का प्रारम्भ नहीं अपितु यह तो वह विषय है जिसके बाद कोई विषय शेष नहीं रहता है।
* तन्त्र एक रहस्य है जिसे जिसने जितना समझा, उसने उतना ही स्वयं को पहचाना।
* तन्त्र परम तत्त्व से साक्षात्कार कराता है।
* तन्त्र के द्वारा समस्त कामनाओं को प्राप्त किया जा सकता है।
* तन्त्र विश्वास का सूत्रपात करता है।
* तन्त्र द्वारा प्राप्त किये गये फलों से व्यक्ति में आत्मविश्वास उत्पन्न होता है।
* तन्त्र प्रयोग के द्वारा स्थूल से सूक्ष्म का तथा सूक्ष्म से स्थूल का रहस्य ज्ञात होता है।
• तन्त्र के द्वारा उस अभिजित शक्ति को प्राप्त किया जाता है जिसे आधुनिक विज्ञान कभी भी प्राप्त नहीं कर पायेगा।
* तन्त्र के द्वारा व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की उन्नति होती है आज जो भी प्रगति है वह सब तन्त्र ही है यथा- राजतन्त्र, मशीनतन्त्र, उर्वरक तन्त्र आदि।
* तन्त्र के द्वारा असम्भव को भी सम्भव बनाया जाता है।
* तन्त्र के द्वारा भाग्य को भी अनुकूल बनाया जा सकता है।
* तन्त्र मृत्यु के बाद के रहस्य को भी प्रस्तुत करता है।
* जो कल था वह आज नहीं, जो आज है वह कल नहीं होगा लेकिन तन्त्र कल भी था, आज भी है और कल भी रहेगा।
* तन्त्र के अभाव में व्यक्ति दुःख तथा क्लेश ही पाता है।
* तन्त्र एक मौन क्रिया है जिससे बड़े-बड़े आश्चर्यजनक तथ्य प्रस्तुत होते हैं।
* पूर्व जन्म के शुभ कर्मों के फलस्वरूप यदि तन्त्र का रहस्य ज्ञात हो जाये तो उसे जीवन में उतार लेना चाहिये।
* तन्त्र के अन्तर्गत षट्कर्म आते हैं परन्तु षट्कर्म के प्रभाव में तन्त्र कभी नहीं आता। तन्त्र षट्कर्मों से बहुत आगे की अगम्य विद्या है।
* तन्त्र और उनके प्रयोगों का आशय अन्यासी और अघोरियों से नहीं बल्कि साधारण मनुष्यों से सम्बन्धित है।
* तन्त्र का दुरुपयोग करने वाले समाज के शत्रु तथा महापापी हैं।
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