माता वार्ताली: शक्ति, स्वरूप और साधना
माता वार्ताली का नाम भारतीय तंत्र-मंत्र और शाक्ति साधना में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उन्हें शक्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है और उनकी साधना विशेष रूप से तांत्रिक परंपराओं में महत्वपूर्ण मानी जाती है। माता वार्ताली के बारे में विश्वास किया जाता है कि वे अपनी भक्तों को मानसिक शांति, समृद्धि और जीवन के हर पहलू में सफलता प्रदान करती हैं।
माता वार्ताली का स्वरूप
माता वार्ताली का स्वरूप अत्यधिक पवित्र और दिव्य होता है। उन्हें एक बलशाली और दयालु देवी के रूप में पूजा जाता है। उनके शरीर का रंग सामान्यतः काला या गहरा नीला होता है, जो उनका तामसी और रौद्र रूप प्रदर्शित करता है, साथ ही उनकी कड़ी साधना और शक्ति का प्रतीक भी है।
माता वार्ताली के चार हाथ होते हैं, जिनमें विभिन्न तंत्र-मंत्र से संबंधित उपकरण होते हैं। उनके हाथों में त्रिशूल, तलवार, या देवी-देवताओं के प्रतीक होते हैं। उनका चेहरा तेजस्वी और दिव्य होता है, जो उनके अद्भुत शौर्य और शक्ति को दर्शाता है। वे कभी-कभी अपने शरीर पर रक्त रेखाओं के साथ, क्रोध और संहारक रूप में भी चित्रित होती हैं, जो उनके शक्ति के अदृश्य रूप का प्रतीक है।
माता वार्ताली की साधना विधि
माता वार्ताली की साधना एक गहरी तांत्रिक प्रक्रिया है जो केवल विशेष तंत्र साधकों द्वारा की जाती है। यह साधना शुद्ध मन और आत्मा से की जाती है, और इसमें देवी के प्रति निष्ठा और श्रद्धा की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
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साधना स्थान का चयन: माता वार्ताली की साधना के लिए एक शांत, निर्जन और पवित्र स्थान का चयन करना आवश्यक होता है। यह स्थान साधक के मानसिक एकाग्रता को बढ़ाने में मदद करता है। साधना स्थल को स्वच्छ और वायु से परिपूर्ण रखा जाता है, ताकि देवी का आशीर्वाद सहज रूप से प्राप्त हो सके।
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तंत्र-मंत्र का प्रयोग: माता वार्ताली की साधना में विशेष तंत्र-मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। इन मंत्रों का जाप ध्यान और समर्पण के साथ करना पड़ता है। मुख्य मंत्र "ॐ वार्ताली देवि नमः" का जाप साधक को शक्ति और साहस प्रदान करता है। मंत्रों का जाप विशेष संख्या में किया जाता है, जैसे 108 या 1008 बार, और यह जाप एकाग्रता से किया जाता है।
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पूजा और अर्चना: पूजा के दौरान देवी की प्रतिमा या चित्र को शुद्ध करके उनका पूजन किया जाता है। चंदन, फूल, फल और दीपक से पूजा की जाती है। साधक को देवी के प्रति श्रद्धा और समर्पण का भाव रखना होता है। साधना के दौरान माता की स्तुति और आराधना की जाती है, जिससे देवी की कृपा प्राप्त होती है।
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हवन और यज्ञ: कुछ विशेष साधनाओं में हवन या यज्ञ भी किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण तंत्रिक प्रक्रिया है जो आहुति देने से देवी की कृपा प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करती है।
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निष्ठा और धैर्य: माता वार्ताली की साधना में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि साधक को निष्ठा, धैर्य और अनुशासन के साथ साधना करनी होती है। यह एक लम्बी प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन जब भक्त पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ साधना करता है, तब देवी की आशीर्वाद से उसका जीवन सकारात्मक रूप से बदल जाता है।
माता वार्ताली की साधना के लाभ
माता वार्ताली की साधना करने से भक्तों को अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। उनके द्वारा दी जाने वाली विशेष कृपा से जीवन में सुख, समृद्धि, और मानसिक शांति आती है।
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मन की शांति और संतुलन: माता वार्ताली की पूजा और साधना से मानसिक शांति प्राप्त होती है। जो व्यक्ति मानसिक तनाव या मानसिक शांति की तलाश में होता है, वह उनके आशीर्वाद से भीतर से शांत और संतुलित हो जाता है।
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आध्यात्मिक उन्नति: माता की साधना से भक्त की आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह साधना आत्मा की गहराई में प्रवेश करने और आत्म-ज्ञान प्राप्त करने का मार्ग खोलती है।
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सभी विघ्नों का निवारण: माता वार्ताली की पूजा से भक्तों के जीवन में आने वाली सभी बाधाओं और विघ्नों का निवारण होता है। वह अपने भक्तों को हर संकट से उबारने में सक्षम हैं।
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साधक की मानसिक और शारीरिक शक्ति में वृद्धि: जो व्यक्ति साधना में लगातार समर्पित रहता है, उसकी मानसिक और शारीरिक शक्ति में भी वृद्धि होती है। साधक अधिक स्थिर, एकाग्र और शक्तिशाली महसूस करता है।
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समृद्धि और धन: देवी की कृपा से साधक के जीवन में समृद्धि आती है और उसकी दरिद्रता दूर होती है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो आर्थिक संघर्ष से जूझ रहे होते हैं।
अब तक वीडियो में आपने माता की पूरी साधना के बारे में जानकारी प्राप्त की होगी जिन्होंने वीडियो नहीं देखी कृपया करके एक बार वीडियो देख लीजिए। यहाँ पर हम आपको माता वार्ताली की साधना विधि प्रदान कर रहे हैं।
लकड़ी की चौकी ले उस पर लाल रंग का रेशमी कपड़ा बिछाकर चावलों से अष्टदल बनाकर उस पर ताम्रपत्र पर अंकित वार्ताली यंत्र स्थापित करें। चौकी के चारों कोनों में तेल के चार दिए जलाएं।
साधक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी या गुरुवार गणेश की पूजा करने के उपरांत मुख्य पूजा करें साधक लाल रंग के वस्त्रों को धारण करें और आसन लाल ही रंग का होना चाहिए।
सामने देसी घी का अखंड दीपक जलाकर रखें और अपने बाई ओर सामने की तरफ एक जल का पात्र रखें।
सबसे पहले गणेश जी का, गुरु जी का, इष्ट देवता का ध्यान करना है उसके बाद में देवी को प्रणाम करके हाथ में जल लेकर संकल्प लीजिए। और फिर गणेश जी का गुरु जी का और इष्ट देवता का एक-एक माला जाप कीजिए।
उसके बाद में
सबसे पहले विनियोग पढ़कर दाएं हाथ में जो जल लिया उसे भूमि पर छोड़ दें विनियोग इस प्रकार है
ॐ अस्य श्री वार्ताली मंत्रस्य पराअम्मबा ऋषय: त्रिषटुप छन्दसे क्रियामय त्रिकाल देवता ऐं बीजम श्री शक्ति कीलकम अस्मिन श्री वार्ताली मंत्र जपे विनियोग।।
ऋष्यादि न्यास:-
(१) परांम्बा ऋषये नमः शिरिस।
(२) त्रिष्टुप छन्दसे नमः मुखे।
(३) त्रिकाल देवताभ्यो नमः हृदये।
(४) ऐं बीजाय नमः गुह्ये।
(५) ह्रीं शक्ति नमः नाभौ।
(६) श्री कीलकाय नमः पाठ्यो।
(७) विनियोगाय नमः सर्वांगे।
कर न्यास:-
(१) ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः।
(२) ऐं तर्जनीभ्यां नमः।
(३) ह्रो मध्यामभ्यां नमः।
(४) श्री अनामिकाभ्यां नमः।
(५) पंच कारस्य कनाष्ठिकाभ्यां नमः।
(६) ॐ ऐं ह्रीं श्री करतल कर पृष्ठभ्यां नमः।
षडङ्गन्यास:-
(१) ॐ हृदयाय नमः( पांचों अंगुलियों से ह्रदय को स्पर्श करें )
(२) ह्रीं शिरसे स्वाहा। ( सिर को स्पर्श करें)
(३) ह्रीं शिखायै वषट्। (सिखा को स्पर्श करें।)
(४) श्री कवचाय हूँ। (दोनों कंधों को स्पर्श करें)
(५) पंचकरस्य नेत्र त्र्याय वौषट। (दोनों नेत्रों को स्पर्श करें)
(६) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अस्त्राय फट्ट। अपने सिर के ऊपर से दाहिना हाथ घुमाकर चुटकी बजा दें।
इसके बाद में देवी को प्रणाम करके गणेश जी का गुरु जी का इष्ट देवता का ध्यान करते हुए देवी के मंत्र का जाप कीजिए।
मंत्र इस प्रकार है :-ॐ ऐं ह्रीं श्रीं पंच-कारस्य स्वाहा।सूचना: हमें उम्मीद है, कि आपको श्री राम परिवार की यह पोस्ट पसंद आई होगी। आप इस पोस्ट को आगे share करके हमे सहयोग जरूर प्रदान करे। आपका बहुत आभार ।।
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🌹🏵️ ।।जय मां भवानी।।
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