श्री गणपति 1 दिवसीय साधना । Ganpati sadhana for a good life.



श्री संकटनाशन गणपति अनुष्ठान

गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है।

चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं। वे लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है।

जीवन में अगर आपको सफलता नहीं मिल रही है एक साधनाओं में कोई लाभ नहीं मिल रहा है शत्रु ने आपको बहुत ज्यादा परेशान कर दिया है हर कार्य में सफलता ही हाथ लग रही है तो भगवान गणेश जी के शरण में जाना चाहिए उनकी कृपा से हर कार्य में सफलता मिलती है और आपकी उन्नति और विकास होता है।

संकटनाशन गणेश स्तोत्रम् ऐसा महशक्तिशाली पाठ हैं, जिनका प्रयोग हर कोई सरलता से कर सकता है। संकटनाशन गणपति स्त्रोत साधना में आने वाले हर विघ्न बाधा को समूल नष्ट कर देता है।
साधना क्षेत्र में जब एक नया साधक आये तो उसे पहले गुरु साधना के पश्चात गणपति साधना कर लेनी चाहिये। यह अति आवश्यक है। सीधे मुख्य साधना आरंभ कर के कोई लाभ नही।
तो एक नये साधक को गुरु साधना के पश्चात गणपति साधना करनी चाहिये।


अब गणपति में भी कौन से गणपति की साधना करनी है वह भी जानना अति आवश्यक है। गणपति के भी बहुत से स्वरूप हैं। प्रमुख रूप से हम सब अष्ट विनायक को जानते हैं। इन आठ मुख्य विग्रह के अलावा भी गणपति के अनेक तंत्रोक्त विग्रह हैं। इन विग्रहों की साधना, साधक की मुख्य साधना पर निर्भर करेगा। जैसे साधक अगर महादुर्गा भगवती की मुख्य साधना करेगा तो गणपति भी महागणपति होंगे, भगवती बगला की करना हो तो हरिद्रा गणपति होंगे, महाविद्या मातंगी की करना हो तो उच्छिष्ट गणपति होंगे इत्यादि।

सर्व प्रथम विघ्न विच्छेद हेतु और अकस्मात संकट निवारण हेतु संकटनाशन का अनुष्ठान करना चाहिये। उसकी निम्न विधि है।
किसी भी मास के चतुर्थी तिथि से यह साधना आरंभ करें। पक्ष कोई सा भी हो।
यह प्रयोग अगर श्रीगणेश के मंदिर में या उनके विग्रह के पास करें तो आशानुरूप फल प्राप्त होने की संभावना ज्यादा रहती है।

आसन कुशा का या लाल अथवा पीला। वस्त्र पीला या लाल। दिशा दक्षिण छोड़ के कोई भी। एक सफेद कागज वाली कॉपी और लाल स्याही वाली कलम ले लिजिये। आसन पर बैठकर पहले आचमन, आसन ग्रहण, शिखा बंधन कर लिजिये। फिर अगर स्वस्तिवाचन आता हो तो करें नही तो तीन बार ॐ विष्णवै नमः का पाठ करें। तत्पश्चात हाथ में अक्षत फुल लेकर संकल्प करें। अपना नाम गोत्र बोलकर फिर यह पढे़ मम् साधना मार्गे सर्व संकट निवारणार्थे, अनुष्ठानं मुख्य देवतायाः परम कृपा प्राप्तार्थे अष्टवारं सकंटनाशन गणपति स्त्रोतं लिखितं तद् उपरांतं ब्राह्मणं समर्पणं संकल्पं अहं करिष्ये।

संकल्प उपरांत अक्षत फुल गणपति जी के पास रख दें और फिर गणपति जी के समक्ष पांच पान पत्ते पर 1-1लड्डु, 1-1 सुपारी, 2-2 लौंग और 1-1 इलाइची के साथ चढा़ दें।
फुल की माला या दुर्वा की माला विनायक को पहनायें। दुर्वा अर्पित करें।
अब एक घी का दीपक प्रज्जवलित करें।
इसके पश्चात अपने गुरुजी का ध्यान करें फिर विनायक का। तदुपरांत कुलदेवी और समस्त शिव परिवार का ध्यान करें और पुष्प चढा़यें।

अब संकटनाशन गणपति स्त्रोत लिखना आरंभ करें। कुल आठ बार लिखना है। लिखते समय मन से विनायक का स्मरण करते रहें।


जब लिख लें तब आठ पार इस स्त्रोत का पाठ करें। हर पाठ के आरंभ में थोडे़ से दुर्वा और एक लाल कनेर का पुष्प हाथ में रख लें। पाठ के पूर्ण होने पर श्री गणेश को चढा़ दिया करें।

अगर जीवन में बहुत से संकट हैं और आपका पूजा पाठ, साधना फलित नही हो रहा हो तब ऐसी स्थिति में 108 पाठ इसी विधि से करें, आठ बार लिखने के बाद।

पाठ पूर्ण करके फिर वह कॉपी हाथ में लेकर उस पर अक्षत,पुष्प और दक्षिणा रखकर कहें – मम् जीवनं उपस्थित सर्व संकट नाश एवं साधना मार्ग उपस्थित सर्व विघ्न विच्छेद हेतवे च गणपति कृपा प्राप्तार्थे मम् हस्त लिखितं संकटनाशन गणेश स्त्रोतम् विघ्नहर्ता गणपति चरणं सेवक ब्राह्मणं समर्पयामि।। 
इस श्लोक को बोल कर गणेश जी को प्रणाम करे ओर बाद मे इस हस्तलिखित स्त्रोत्र ( काफी / पेजों ) को गणेश मंदिर मे जाकर पुजारी को  दक्षिणा सहित प्रदान कर दे और उनसे आशीर्वाद भी ले ले । 
 
पूजा पूरा होने के बाद गणेश जी का प्रसाद स्वयं लेले और छोटे छोटे बच्चों को जरूर प्रदान करे। इससे आपकी साधना पूर्ण हो जाएगी। 

विशेष प्रयोग – बहुत बडा़ संकट आ गया हो और उससे निकलने का कोई मार्ग ना दिख रहा हो तो यह विधान जो एक दिवसीय था वह किसी भी पक्ष के चतुर्थी से चतुर्दशी तक 10 दिन लगातार करें।
और अंतिम दिन इस स्त्रोत में उपस्थित विनायक के बारह नामों द्वारा हर नाम थे 108 आहुति मोदक या छोटी छोटी बुंदी के लड्डु से दें।

गणेश के सभी 32 रूप

हवन के पश्चात 12 दीपक प्रज्जवलित कर आरती करें। तथा 12 कुवांरे बालकों को भोजन करवायें। यह एक प्रकार से इस स्त्रोत को सिद्ध करने का अकाट्य विधान है। इस विधान को करने से यह स्त्रोत पूर्ण रूप से जाग्रत हो जाता है एवं जहां कहीं भी इसका प्रयोग होता है वहां स्वयं द्वादश गणेश रक्षा करते हैं तथा संकट हरते हैं।

गणेश शुभारंभ की बुद्धि देते हैं और काम को पूरा करने की शक्ति भी। वे बाधाएं मिटाकर अभय देते हैं और सही- गलत का भेद बताकर न्याय भी करते हैं। गणेश के इन रूपों में उनके प्रथम पूज्य होने का कारण छिपा है।

भगवान गणेश वास्तव में प्रकृति की शक्तियों का विराट रूप हैं। मुद्गल और गणेश पुराण में विघ्नहर्ता गणेशजी के 32 मंगलकारी रूप बताए गए हैं। इनमें वे बाल रूप में हैं, तो किशोरों वाली ऊर्जा भी उनमें मौजूद है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश की शक्ति उनमें समाहित है, तो वे सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा का रूप भी हैं। वे पेड़, पौधे, फल, पुष्प के रूप में सारी प्रकृति खुद में समेटे हैं। वे योगी भी हैं और नर्तक भी।

नंजनगुड शिव मंदिर में गणेश के 32 रूप विराजित कर्नाटक में मैसूर के पास नंजनगुड शिव मंदिर में भगवान गणेश के सभी 32 रूप मौजूद हैं। इस मंदिर में देवी-देवताओं की 100 से अधिक प्रतिमाएं विभिन्न रूपों में हैं। इस मंदिर की गिनती कर्नाटक के सबसे बड़े मंदिरों में होती है। तस्वीर भगवान गणेश के पंचमुख रूप की मूर्ति की है। यहां उन्हें कदरीमुख गणपति कहा जाता है।

1. श्री बाल गणपति - यह भगवान गणेश का बाल रूप है। यह धरती पर बड़ी मात्रा में उपलब्ध संसाधनों का और भूमि की उर्वरता का प्रतीक है। उनके चारों हाथों में एक-एक फल है- आम, केला, गन्ना और कटहल। गणेश चतुर्थी पर भगवान के इस रूप की पूजा भी की जाती है।

प्रेरणा यह रूप संकट में भी बाल सुलभ सहजता की प्रेरणा प्रेरणा देता है। इंसान की आगे बढ़ने की क्षमता दर्शाता है।


2. तरुण गणपति - यह गणेशजी का किशोर रूप है। उनका शरीर लाल रंग में चमकता है। इस रूप में उनकी 8 भुजाएं हैं। उनके हाथों में फलों के साथ-साथ मोदक और अस्त्र-शस्त्र भी हैं। यह रूप आंतरिक प्रसन्नता देता है। यह युवावस्था की ऊर्जा का प्रतीक है। प्रेरणा - इस रूप में गणपति अपनी पूरी क्षमता से काम करने और उपलब्धियों के लिए संघर्ष की प्रेरणा देते हैं।


3. भक्त गणपति - इस रूप में वे श्वेतवर्ण हैं। उनका रंग पूर्णिमा के चांद की तरह चमकीला है। आमतौर पर फसल के मौसम में किसान उनके इस रूप की पूजा करते हैं। यह रूप भक्तों को सुकून देता है। उनके चार हाथ हैं, जिनमें फूल और फल हैं।

प्रेरणा - इस रूप में गणपति इंसान के चार पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं।


4. वीर गणपति - यह गणेशजी का योद्धा रूप है। इस रूप में उनके 16 हाथ हैं। उनके हाथों में गदा, चक्र, तलवार, अंकुश सहित कई अस्त्र हैं। इस रूप में गणेश युद्ध कला में पारंगत बनाते हैं। इस रूप की उनकी पूजा साहस पैदा करती है। हार न मानने के लिए प्रेरित करती है। प्रेरणा - इस रूप में गजानन बुराई और अज्ञानता पर विजय पाने के लिए पूरी क्षमता से लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं।


5. शक्ति गणपति - इस रूप में उनके चार हाथ हैं। एक हाथ से वे सभी भक्तों को आशीर्वाद दे रहे हैं। उनके अन्य हाथों में अस्त्र-शस्त्र भी हैं और माला भी। इस रूप में उनकी शक्ति भी साथ हैं। वे सभी भक्तों को शक्तिशाली बनने का आशीर्वाद देते हुए ‘अभय मुद्रा’ में हैं। प्रेरणा - गणेश जी का यह रूप इस बात प्रतीक है कि इंसान के भीतर शक्ति पुंज है, जिसका उसे इस्तेमाल करना है।


6. द्विज गणपति - इस रूप में उनके दो गुण अहम हैं- ज्ञान और संपत्ति। इन दो को पाने के लिए गणपति के इस रूप को पूजा जाता है। उनके चार मुख हैं। वे चार हाथों वाले हैं। इनमें कमंडल, रुद्राक्ष, छड़ी और ताड़पत्र में शास्त्र लिए हुए हैं।

प्रेरणा - द्विज इसलिए हैं क्योंकिवे ब्रह्मा की तरह दो बार जन्मे हैं। उनके चार हाथ चार वेदों की शिक्षाओं का प्रतीक हैं।

7. सिद्धि गणपति - इस रूप में गणेशजी पीतवर्ण हैं। उनके चार हाथ हैं। वे बुद्धि और सफलता के प्रतीक हैं। इस रूप में वे आराम की मुद्रा में बैठे हैं। अपनी सूंड में मोदक लिए हैं। मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धि विनायक मंदिर में गणेशजी का यही स्वरूप विराजित है।

प्रेरणा - भगवान गणेश का यह रूप किसी भी काम को दक्षता से करने की प्रेरणा देता है। यह सिद्धि पाने का प्रतीक है।

8. उच्छिष्ट गणपति - इस रूप में गणेश नीलवर्ण हैं। वे धान्य के देवता हैं। यह रूप मोक्ष भी देता है और ऐश्वर्य भी। एक हाथ में वे एक वाद्य यंत्र लिए विराजित हैं। उनकी शक्ति साथ में पैरों पर विराजित हैं। गणेशजी के इस रूप का एक मंदिर तमिलनाडु में है।

प्रेरणा - यह रूप ऐश्वर्य और मोक्ष में संतुलन का प्रतीक है। वे कामना और धर्म में संतुलन के लिए प्रेरित करते हैं।


9. विघ्न गणपति - इस रूप में गणेशजी का रंग स्वर्ण के समान है। उनके आठ हाथ हैं। वे बाधाओं को दूर करने वाले भगवान हैं। इस रूप में वे भगवान विष्णु के समान दिखाई देते हैं। उनके हाथों में शंख और चक्र हैं। वे कई तरह के आभूषण भी पहने हुए हैं।

प्रेरणा - यह रूप सकारात्मक पक्ष देखने की प्रेरणा देता है। यह नकारात्मक प्रभाव और विचारों को भी दूर करता है।


10. क्षिप्र गणपति - इस रूप में गणेश जी रक्तवर्ण हैं। उनके चार हाथ हैं। वे आसानी से प्रसन्न होते हैं और भक्तों की इच्छाएं पूरी करते हैं। उनके चार हाथों में से एक में कल्पवृक्ष की शाखा है। अपनी सूंड में वे एक कलश लिए हैं, जिसमें रत्न हैं।

प्रेरणा - यह रूप कामनाओं की पूर्ति का प्रतीक है। कल्पवृक्ष इच्छाएं पूरी करता है और कलश समृद्धि देता है।


11. हेरम्ब गणपति - पांच सिरों वाले हेरम्ब गणेश दुर्बलों के रक्षक हैं। यह उनका विलक्षण रूप है। इस रूप में वे शेर पर सवार हैं। उनके दस हाथ हैं, जिनमें वे फरसा, फंदा, मनका, माला, फल, छड़ी और मोदक लिए हुए हैं। उनके सिर पर मुकुट है।

प्रेरणा - इस रूप में गणेश कमजोर को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देते हैं। वे डर पर विजय पाने की प्रेरणा बनते हैं।


12. लक्ष्मी गणपति - इस रूप में गणेशजी बुद्धि और सिद्धि के साथ हैं। उनके आठ हाथ हैं। उनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, जो सभी को सिद्धि और बुद्धि दे रहा है। उनके एक हाथ में तोता बैठा है। तमिलनाडु के पलानी में गणेशजी के इस रूप का मंदिर है।

प्रेरणा - गणेशजी इस रूप में उपलब्धियां और किसी काम में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए प्रेरित करते हैं।


13. महागणपति - रक्तवर्णहैं और भगवान शिव की तरह उनके तीन नेत्र हैं। उनके दस हाथ हैं और उनकी शक्ति उनके साथ विराजित हैं। भगवान गणेश के इस रूप का एक मंदिर द्वारका में है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने यहां गणेश आराधना की थी।

प्रेरणा - इस रूप में महागणपति दसों दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे भ्रम से बचाते हैं।


14.विजय गणपति - इस रूप में वे अपने मूषक पर सवार हैं, जिसका आकार सामान्य से बड़ा दिखाया गया है। महाराष्ट्र में पुणे के अष्टविनायक मंदिर में भगवान का यह रूप मौजूद है। मान्यता है कि भगवान के इस रूप की पूजा से तुरंत राहत मिलती है।

प्रेरणा - इस रूप में गणपति विजय पाने और संतुलन कायम करने के लिए प्रेरित करते हैं।


15. नृत्त गणपति - इस रूप में गणेशजी कल्पवृक्ष के नीचे नृत्य करते दिखाए गए हैं। वे प्रसन्न मुद्रा में हैं। उनके चार हाथ हैं। एक हाथ में युद्ध का अस्त्र परशु भी है। उनके इस रूप का तमिलनाडु के कोडुमुदी में अरुलमिगु मगुदेश्वरर मंदिर है।

प्रेरणा - इस रूप का पूजन ललित कलाओं में सफलता दिलाता है। वे कलाओं में प्रयोग के लिए प्रेरित करते हैं।


16. उर्ध्व गणपति - इस रूप में उनके आठ हाथ हैं। उनकी शक्ति साथ में विराजित हैं, जिन्हें उन्होंने एक हाथ से थाम रखा है। एक हाथ में टूटा हुआ दांत है। बाकी हाथों में कमल पुष्प सहित प्राकृतिक सम्पदाएं हैं। वे तांत्रिक मुद्रा में विराजित हैं।

प्रेरणा - इस रूप में गणेशजी की आराधना भक्त को अपनी स्थिति से ऊपर उठने के लिए प्रेरित करती है।


17. एकाक्षर गणपति - इस रूप में गणेशजी के तीन नेत्र हैं और मस्तक पर भगवान शिव के समान चंद्रमा विराजित है। मान्यता है कि इस रूप की पूजा से मन और मस्तिष्क पर नियंत्रण में मदद मिलती है। गणपति के इस रूप का मंदिर कनार्टक के हम्पी में है।

प्रेरणा - एकाक्षर गणपति का बीज मंत्र है ‘गं’ है। यह हर तरह के शुभारंभ का प्रतीक है।


18. वर गणपति - गणपति का यह रूप वरदान देने के लिए जाना जाता है। अपनी सूंड में वे रत्न कुंभ थामे हुए हैं। वे सफलता और समृद्धि का वरदान देते हैं। कर्नाटक के बेलगाम में रेणुका येलम्मा मंदिर में भगवान का यह रूप विराजित है।

प्रेरणा - इस रूप में उनके साथ विराजित देवी के हाथों में विजय पताका है। वे विजयी होने के वरदान का प्रतीक हैं।


19. त्र्यक्षर गणपति - यह भगवान गणेश का ओम रूप है। इसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश समाहित हैं। यानी वे सृष्टि के निर्माता, पालनहार और संहारक भी हैं। कर्नाटक के नारसीपुरा में गणेश के इस रूप का मंदिर है, जिसे तिरुमाकुदालु मंदिर के नाम से जाना जाता है।

प्रेरणा - इस रूप में उनकी आराधना आध्यात्मिक ज्ञान देती है। यह रूप स्वयं को पहचानने के लिए प्रेरित करता है।


20. क्षिप्रप्रसाद गणपति - इस रूप में गणेश इच्छाओं को शीघ्रता से पूरा करते हैं और उतनी ही तेजी से गलतियों की सजा भी देते हैं। वे पवित्र घास से बने सिंहासन पर बैठे हैं। तमिलनाडु के कराईकुडी और मैसूर में भगवान के इस रूप का मंदिर है।

प्रेरणा - गणेश जी का यह रूप सभी की शांित और समृद्धि के लिए काम करने की प्रेरणा देता है।


21. हरिद्रा गणपति - इस रूप में गणेशजी हल्दी से बने हैं और राजसिंहासन पर बैठे हैं। इस रूप के पूजन से इच्छाएं पूरी होती हैं। कर्नाटक में श्रंगेरी में रिष्यश्रंग मंदिर में गणेशजी का यह रूप विराजित है। माना जाता है कि हल्दी से बने गणेश रखने से व्यापार में फायदा होता है।

प्रेरणा - इस रूप में गणेश प्रकृति और उसमें मौजूद निरोग रहने की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।


22. एकदंत गणपति - इस रूप में गणेशजी का पेट अन्य रूपों के मुकाबले बड़ा है। वे अपने भीतर ब्रह्मांड समाए हुए हैं। वे रास्ते में आने वाली बाधाओं को हटाते हैं और जड़ता को दूर करते हैं। इस रूप का पूजन पूरे देश में व्यापक रूप से होता है।

प्रेरणा - इस रूप में गणेश अपनी कमियों पर ध्यान देने और खूबियों को निखारने के लिए प्रेरित करते हैं।


23. सृष्टि गणपति - गणेशजी का यह रूप प्रकृति की तमाम शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। उनका यह रूप ब्रह्मा के समान ही है। यहां वे एक बड़े मूषक पर सवार दिखाई देते हैं। तमिलनाडु के कुंभकोणम में अरुलमिगु स्वामीनाथन मंदिर में उनका यह रूप विराजित है।

प्रेरणा - यह रूप सही-गलत और अच्छे-बुरे में फर्क करने की प्रेरणा समझ देता है। इस रूप में गणेश निर्माण के प्रेरणा देते हैं।


24. उद्दंड गणपति - इस रूप में गणेश न्याय की स्थापना करते हैं। यह उनका उग्र रूप है, जिसके 12 हाथ हैं। उनकी शक्ति उनके साथ विराजित हैं। इस रूप में गणेश का देश में कहीं और मंदिर नहीं है। चमाराजनगर और नंजनगुड में गणपति के 32 रूपों की प्रतिमा मौजूद है।

प्रेरणा - गणेशजी का यह रूप सांसारिक मोह छोड़ने और बंधनों से मुक्त होने के लिए प्रेरित करता है।


25. ऋणमोचन गणपति - गणेशजी का यह रूप अपराधबोध और कर्ज से मुक्ति देता है। यह रूप भक्तों को मोक्ष भी देता है। वे श्वेतवर्ण हैं और उनके चार हाथ हैं। इनमें से एक हाथ में मीठा चावल है। इस रूप का मंदिर तिरुवनंतपुरम में है।

प्रेरणा - इस रूप में गणेशजी परिवार, पिता और गुरू के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाने के लिए प्रेरित करते हैं।


26. ढुण्ढि गणपति - रक्तवर्ण गणेशजी के इस रूप में उनके हाथ में रुद्राक्ष की माला है। रुद्राक्ष उनके पिता शिव का प्रतीक माना जाता है। यानी इस रूप में वे पिता के संस्कारों को लिए विराजित हैं। उनके एक हाथ में लाल रंग का रत्न-पात्र भी है।

प्रेरणा - गणेशजी का यह रूप आध्यात्मिक विचारों के लिए प्रेरित करता है। जीवन को स्वच्छ बनाता है।


27. द्विमुख गणपति - गणेशजी के इस स्वरूप में उनके दो मुख हैं, जो सभी दिशाओं में देखने की क्षमता का प्रतिनिधित्व करते हैं। दोनों मुखों में वे सूंड ऊपर उठाए हैं। इस रूप में उनके शरीर के रंग में नीले और हरे का मिश्रण है। उनके चार हाथ हैं।

प्रेरणा - यह रूप दुनिया और व्यक्ति के आंतरिक और बाहरी, दोनों रूपों को देखने के लिए प्रेरित करता है।


28. त्रिमुख गणपति - इस रूप में गणेशजी के तीन मुख और छह हाथ हैं। दाएं और बाएं तरफ के मुख की सूंड ऊपर उठी हुई है। वे स्वर्ण कमल पर विराजित हैं। उनका एक हाथ रक्षा की मुद्रा और दूसरा वरदान की मुद्रा में है। इस रूप में उनके एक हाथ में अमृत-कुंभ है।

प्रेरणा - गणेश जी का यह रूप भूत, वर्तमान और भविष्य को ध्यान में रखकर कर्म करने के लिए प्रेरित करता है।


29. सिंह गणपति - इस रूप में गणेशजी शेर के रूप में विराजमान हैं। उनका मुख भी शेरों के समान है, साथ ही उनकी सूंड भी है। उनके आठ हाथ हैं। इनमें से एक हाथ वरद मुद्रा में है, तो दूसरा अभय मुद्रा में है।

प्रेरणा - गणेश जी का यह रूप निडरता और आत्मविश्वास का प्रतीक है, जो शक्ति और समृद्धि देता है।


30. योग गणपति - इस रूप में भगवान गणेश एक योगी की तरह दिखाई देते हैं। वे मंत्र जाप कर रहे हैं। उनके पैर योगिक मुद्रा में है। मान्यता है कि इस रूप की पूजा अच्छा स्वास्थ्य देती है और मन को प्रसन्न बनाती है। उनके इस रूप का रंग सुबह के सूर्य के समान है।

प्रेरणा - भगवान गणेश का रूप अपने भीतर छिपी शक्तियों को पहचानने के लिए प्रेरित करता है।


31. दुर्गा गणपति - भगवान गणेश का यह रूप अजेय है। वे शक्तिशाली हैं और हमेशा अंधकार पर विजय प्राप्त करते हैं। यहां वे अदृश्य देवी दुर्गा के रूप में हंै। इस रूप में वे लाल वस्त्र धारण करते हैं। यह रंग ऊर्जा का प्रतीक है। उनके हाथ में धनुष है।

प्रेरणा - भगवान गणेश का यह रूप विजय मार्ग में आने वाली बाधाओं को हटाने के लिए प्रेरित करता है।


32.संकष्टहरण गणपति - इस रूप मेंगणेश डर और दुख को दूर करते हैं। मान्यता है कि इनकी आराधना संकट के समय बल देती है। उनके साथ उनकी शक्ति भी मौजूद है। शक्ति के हाथ में भी कमल पुष्प है। गणेशजी का एक हाथ वरद मुद्रा में है।

प्रेरणा - यह रूप इस बात का प्रतीक है कि हर काम में संकट आएंगे, लेकिन उन्हें हटाने की शक्ति इंसान में है।


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🌹🏵️ ।।जय मां भवानी।।



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