उनका पूरा चरित्र बताया गया है, लेकिन आप में से जो लोग नहीं जानते उन्हें हम बताना चाहते हैं कि हनुमान जी ने वाल्मिकी जी से भी पहले रामायण का निर्माण कर दिया था।
और वो जो सारी रामायण उन्होंने पहले ही लिख ली थी। जब ये बात वाल्मिकी जी को पता चली तो महाऋषि वाल्मिकी बाकी बाकी देवताओं के पास गए। श्रीरामचंद्र जी के पास गए और उनसे जाकर उन्होंने प्रार्थना की कि हे प्रभो हमने बहुत ज्यादा तप करके बहुत ज्यादा योग करके दिव्य दृष्टि प्राप्त करके ज्ञान के माध्यम से आपके पूरे चरित्र पूरे जीवन की घटना का ज्ञान करके इस रामायण का निर्माण किया और हनुमान जी ने तो उनसे पहले ही इस रामायण का निर्माण कर दिया। अगर हनुमान जी की रामायण संसार में विद्यमान रही तो हमारी रामायण का कोई भी महत्व नहीं रहेगा और कोई भी इसका आदर नहीं करेगा। तो आप हम पर कृपा कीजिए और कोई मार्ग निकाले ।
इसी कारण से भगवान श्री राम ने हनुमान जी से कह कर जो हनुमान जी की रामायण थी, उसे समंदर में फिकवा दिया और उसके बाद में बाल्मिकी जी की रामायण ही संसार में प्रचलित रही। अब बहुत सारे लोगों का एक प्रश्न ये भी होता है कि भी हनुमान जी ने रामायण कैसे लिखी वाल्मिकी जी से भी पहले क्योंकि वाल्मिकी जी को दिव्य दृष्टि प्राप्त थी , हनुमान जी को रामायण का ज्ञान पहले कैसे हुआ, क्योंकि देखिए हनुमान जी के पास पहले से ही दिव्य चक्षु है। यानी अलग से दिव्य दृष्टि की जरूरत ही नहीं है। और उनके पास पहले से ही दिव्य दृष्टि है, उनको दिव्य दृष्टि जन्म से ही प्राप्त है। उनमें सारी शक्तियां पहले से विद्यमान है। इसी कारण से भगवान को पहले ही पता चल गया था कि क्या होने वाला है और क्या नहीं होने वाला। और साथ ही वो रामायण के लगभग सभी घटनाओं के स्वयं साक्षी रहे थे। अतः संसार उस रामायण को ही ज्यादा महत्व देता ।
इसी कारण से उन्होंने पहले ही भगवान की जो पूरी रामायण थी उसका निर्माण कर दिया था। अब जो रामायण था उसको समुन्द्र में फिकवाने के बाद कैसे वे संसार में वापिस आए तो उस प्रश्न का उत्तर यह है कि जब राजा भोज संसार मे आए जो की विक्रमादित्य के समान बहुत ही समृद्धिशाली और बहुत ही अद्भुत शासक हुए। जब राजा भोज को यह बात पता चली तो उन्होंने शिलाओं पर जो रामायण लिखी गई थी ( क्योंकि हनुमान जी ने जो रामायण लिखी देव शिलाओं के ऊपर बड़े बड़े पत्थरों के ऊपर लिखी थी) उसे राजा नहोज ने समुन्द्र से को निकलवाया और राजा भोज की सभा में एक सभापति दामोदर मिश्र ने उन पत्थरों का संग्रह किया और संग्रह के आधार पर उन्होंने उस ज्ञान को लिपिबद्ध किया और एक पुस्तक के अंदर उतारा। देखिए जो पुस्तक हम आपको प्रदान करने हम इसकी गारंटी नहीं ले सकते क्योंकि वह ज्ञान पूर्ण है या नहीं है। आप भी जानते हैं की हजारों पत्थर जब समुंदर में फेंक दिए जाएं और उनको निकाला जाए तो हो सकता है कि कुछ पत्थर निकले वो कुछ नहीं निकले हो। हो सकता है कि इसमें कुछ कमी भी हो। इस वजह से अगर आपको लगे कि भी कोई चीज अधूरी बताई गई है तो वहां पर आप थोड़ा ध्यान मत दीजिएगा। क्योंकि पत्थरों से ज्ञान को पुस्तकों में लिखना और फिर उसे इतना आगे तक लाना बहुत ही कठिन होता है कि ये रामायण पूर्णता संस्कृत में लिखी गई थी क्योंकि राजा भोज के समय भी संस्कृत का बहुत ज्यादा प्रचलन था और वही जो संस्कृत की रामायण थी वही आगे चलती आई। लेकिन आज भी जो पुस्तक हम आपको प्रदान कर रहे हैं। इसके अंदर जो रामायण है इसका हिंदी में आदि किया गया है। जिससे कि आपको पढ़ने में बहुत आसानी होगी। जिससे आपको बहुत अच्छे प्रकार से ये कहानी पता चलेगी जो हनुमान जी ने बताई है।
और अब देखिए जो पुस्तक आज हम आपको प्रदान कर रहे यह पुस्तक भी आजकल का नहीं बल्कि आज से 100 साल से भी ज्यादा पुराना है।
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इस नाटक में केवळ अङ्कनें के अतिरिक्त विदूषकादिक और कोई भी नाटकफी बात नहीं है, तथापि यह आदिनाटक समझा जाता है. इस ग्रन्थके कर्त्ताका पत्ता नहीं लगता है, परन्तु ''रचितमनिळपुत्रेणाय वाल्मी किनाब्धौ, निहितममृतबुद्धया माङ्महानाटकं यत् । सुमत्तिनुषेतिभोजेनोद्धर्वं वत्क- मेण, प्रथितमवतु विश्वं मिश्रदामोदरेण।। '' इस श्लोकके अनुसार बिदित होता है की - कि जब महर्षिवाल्मीकि जी ने इसको देखा तब महाराज रामचन्द्रजी से कहा कि- हे राजन् ! हनुमानजी के रामायणके विद्यमान रहते हमारे रामायणका आदर न होगा. कारण कि, आपका चरित्र इमको तौ ध्यानसे विदित हुआ है और महा- वीरजीका चाक्षुषप्रत्यक्ष किया हुआ है. यह सुन, रामचन्द्रजीने शिलाओं पर लिखा हुआ यह नाटक इनूमान्जी से कहकर, समुद्रमें फिंकवादिया। फिर उनके पीछे राजा भोजने उन शिलाओंको समुद्रमेंसे निकलवाया और उनकी सभाम दामोदर मिश्र ने संग्रह किया. इम नहीं कह सकते कि यह पुस्तक सम्पूर्णतः पूर्ण हो, परन्तु इस पूयतक का अत्यन्त प्राचीन पुस्तकले शुद्ध करके सरल भाषा टीका किएय गया है। इसमें के बहुतले श्लोक वाल्मीकीय रामायण-रघुवंश- अभिज्ञानशाकुन्तल-उत्तररामचरित-आदि पुस्तकों में भी देखे जाते हैं, न जानें इसका क्य कारण है?
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