श्री राम परिवार (Shree Ram Pariwar) में आपका हार्दिक स्वागत करता है।
इस पोस्ट में हमने आप सभी को शाबर मंत्र संग्रह
भाग 8 उपलब्ध करवाया है। हमने आपको पहले भी शाबर मंत्र संग्रह के पाँच भाग उपलब्ध
करवा दिए हैं। उनको आप प्राप्त कर सकते हैं, उनकी लिंक में नीचे दे दूंगा।
इस भाग में आपको वह सभी मंत्र देखने को मिलेंगे जो कि पिछले भाग में आपको देखने
को नहीं मिले थे। पिछले भाग के ऊपर कुछ सुझाव भी आपको इसमें देखने को मिल जाएंगे।
जिनको भी वशीकरण और मोहन से संबंधित मंत्र और तंत्र चाहिए थे वह भी इसमें आपको
देखने को मिलेंगे साथ ही कई आयुर्वेदिक औषधियों के बारे में इसमें आपको जानकारी
देखने को मिल जाएगी।
आप सभी लोग साबर मंत्रों के शक्तियों से परिचित के साबर मंत्र कितने ज्यादा
शक्तिशाली होते हैं और उसी के लिए हमने एक नई सीरीज शुरु की थी। जिसे हमने "शाबर मंत्र पुस्तक" का नाम दिया था। जिसमें हम आप सभी को साबर मंत्र से संबंधित सारी पुस्तकें
उपलब्ध करवाएंगे। इसके बाद में आने वाले भाग भी में हम आपको आगे उपलब्ध करवाएंगे,
आप इस भाग को डाउनलोड कीजिए इसका अध्ययन कीजिए।
आप सभी से निवेदन है कि अगर आप किसी भी औषधि का उपयोग करते हैं। तो कृपया करके
किसी भी जानकार व्यक्ति से संपर्क जरूर करें, वरना हो सकता है कि वह सभी आपको कोई
दुष्परिणाम भी देखने को मिल सकता है क्योंकि हो सकता है कि उस औषधि से आपको
एलर्जी हो इसके लिए किसी डॉक्टर या किसी जानकारी व्यक्ति से सुझाव लेकर ही
औषधियों का प्रयोग करें।
किताब में दी गई किसी भी विधि को अगर आप करते हैं आपके साथ कोई घटना घटती है
तो उसके जिम्मेदार हम नहीं होंगे तो कृपया सोच समझकर ही कोई कार्य को कीजिए
और गुरु की साधना में आवश्कता होती है तो कृपया करके अपने गुरु से जरूर
संपर्क किया कीजिएगा।
साबर मंत्रों के बारे मे कुछ विशेष जानकारी
देखिए मंत्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है, मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है और मंत्र से किसी यक्षिणी और यक्ष को भी साधा जाता है। 'मंत्र साधना' भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है। मंत्र के द्वारा हम खुद के मन या मस्तिष्क को बुरे विचारों से दूर रखकर उसे नए और अच्छे विचारों में बदल सकते हैं। इस के बारे मे हम आपको कुछ सामान्य जानकारी प्रदान कर रहे हैं।।
मुख्यत: 3 प्रकार के मंत्र होते हैं- 1.वैदिक मंत्र, 2.तांत्रिक मंत्र और 3.शाबर मंत्र। इसी तरह मंत्र जप के तीन भेद हैं- 1.वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप।
साबर मंत्र के जनक : कहते हैं कि साबर मंत्रों के जनक गुरु मत्स्येंद्र नाथ और उनके शिष्य गुरु गोरखनाथ हैं। इन मंत्रों को शैवपंथ की नाथ परंपरा के अलावा आदिवासी, बंजारा, सपेरा, जादूगर और भारत की अन्य जनजातियों के मंत्र माने जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि असल में इन शाबर मंत्रों में वज्रयान की वज्रडाकिनी अथवा वज्रतारा आदि से भी निचली तामसिक देवों की प्रार्थना की जाती है, उनकी आन पर ही काम होता है।
साबर मंत्र की भाषा : साबर मंत्र को प्राकृत मंत्र भी कहते हैं। अर्थात यह संस्कृत नहीं बल्कि प्राकृत भाषा की आम बोलचाल की भाषा के मंत्र है। हालांकि कई साबर मंत्रों में संस्कृत, हिंदी, मलयालम, कन्नड़, गुजराती या तमिल भाषाओं का मिश्रित रूप या फिर शुद्ध क्षेत्रीय भाषाओं की ग्राम्य शैली और कल्पना का समावेश भी दृष्टिगोचर होता है। सामान्यतया ‘शाबर-मंत्र’ हिंदी में ही मिलते हैं लेकिन कुछ मंत्रों में इस्लाम के प्रभाव के चलते ऊर्दू का भी समावेश देखा गया है और सुलेमान मंत्रों का भी अविष्कार किया गया है।
साबर मंत्रों के प्रकार : साबर मंत्रों में ‘आन और शाप’ तथा ‘श्रद्धा और धमकी’ दोनों का प्रयोग किया जाता है। आन माने सौगन्ध। दूसरा यह कि मंत्र का प्रयोगकर्ता यदि भक्त है तो वह देवी या देवताओं को धमकी देकर भी काम करवा सकता है अन्यथा श्रद्धा से तो ही हो जाएगा।
विशेष बात यह है कि उसकी यह ‘आन’ भी फलदायी होती है। आन माने सौगन्ध। अभी वह युग गए अधिक समय नहीं बीता है, जब सौगन्ध का प्रभाव आश्चर्यजनक व अमोघ हुआ करता था। ‘शाबर’ मंत्रों में जिन देवी-देवताओं की ‘शपथ’ दिलायी जाती है, वे आज भी वैसे ही हैं।
कैसे होते हैं देवता प्रसन्न : शाबर मंत्रों में जिस प्रकार एक अबोध बालक अपने माता-पिता से गुस्से में आकर चाहे जो कुछ बोल देता है, हठ कर बैठता है बस उसी प्रकार से कोई भक्त अपने देवी या देवता से हठ करता है। कहते हैं कि ये देव व्यक्ति की भक्ति और उसका निष्कपट स्वभाव देखते हैं बस इसी से वे प्रसन्न हो जाते हैं।
जिस प्रकार अल्पज्ञ, अज्ञानी, अबोध बालक की कुटिलता व अभद्रता पर उसके माता-पिता अपने वात्सल्य, प्रेम व निर्मलता के कारण कोई ध्यान नहीं देते, ठीक उसी प्रकार बाल सुलभ सरलता, आत्मीयता और विश्वास के आधार पर निष्कपट भाव से शाबर मंत्रों की साधना करने वाला परम लक्ष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।
मंत्रों के कार्य : प्रत्येक शाबर मंत्र अपने आप में पूर्ण होता है। शास्त्रों से परे शाबर मंत्र अपने लाभ व उपयोगिता की दृष्टि से विशेष महत्व के हैं। शाबर मंत्र से ज्ञान या मोक्ष नहीं बल्की सांसारिक कार्य और सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। ‘शाबर-मंत्र’ तुरंत, विश्वसनीय, अच्छा और पूरा काम करते हैं। इसमें किसी भी प्रकार से तर्पन, न्यास, अनुष्ठान, हवन आदि कार्य नहीं किए जाते हैं।
इस साधना को किसी भी जाति, वर्ण, आयु का पुरुष या स्त्री कर सकते हैं। इन मंत्रों की साधना में गुरु की इतनी आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि इनके प्रवर्तक स्वयंसिद्ध-साधक रहे हैं। फिर भी इन मंत्रों को सिद्ध करने के लिए कोई अच्छा साधक या गुरु मिल जाए तो सोने पे सुहागा सिद्ध समझो। उसमें होने वाली किसी भी परेशानी से आसानी से बचा जा सकता है। षट्कर्मों की साधना तो बिना गुरु के न करें।
आपसे एक निवेदन है कृपया करके किसी भी साबर मंत्र का प्रयोग करते हैं तो सोच
समझकर कीजिए, क्योंकि यह बहुत ही ज्यादा प्रभावशाली होते हैं और कभी भी इन का
गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए नहीं तो आपको विशेष हानियां उठानी पड़ सकती है
इसलिए हमेशा का सदुपयोग करने की कोशिश करें।
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नमस्कार मित्रों इस पोस्ट में हम आप सभी को शिव स्वरोदय नामक पुस्तक उपलब्ध करवा रहे हैं। यह पुस्तक माता पार्वती और भगवान शिव के संवाद के रूप में आपको देखने को मिलेगी।इसके अंदर भगवान शिव ने माता पार्वती को स्वरोदय के बारे में बताया है उसके महत्व के बारे में भगवान ने बताया है। शिव स्वरोदय पुस्तक में आपको स्वर से संबंधित बहुत जानकारी देखने को मिलेगी स्वर से संबंधित सारी जानकारी हमने आपको एक अन्य पोस्ट में उपलब्ध करवा रखी। Also Read शिव स्वरोदय क्या हैं। शिव स्वरोदय पुस्तक में आपको स्वर से संबंधित सभी प्रकार की चीजें, सभी प्रकार के रोगों का निदान और बहुत से तांत्रिक प्रयोग भी देखने को मिलेंगे बहुत से ऐसे प्रयोग देखने को मिलेंगे जिनको आप स्वरोदय के माध्यम से दूर कर सकते हैं। स्वरोदय पुस्तक बहुत ही बड़ा आधुनिक विज्ञान है जो कि आपको आज हम इस पोस्ट में उपलब्ध करवा रहे है। 🙏 देखिए इस तरीके के बहुत से ग्रंथ हैं जो कि आज के आधुनिक विज्ञान से भी बहुत ज्यादा आधुनिक है उन ग्रंथों में आपको ऐसे ऐसी जानकारी देखने को मिलेगी जो कि आज के वैज्ञ...
आयुर्वेद शब्द का अर्थ क्या है? आयुर्वेद ( = आयुः + वेद ; शाब्दिक अर्थ : 'आयु का वेद' या 'दीर्घायु का विज्ञान' एक मुख्य और सबसे श्रेष्ठ चिकित्सा प्रणाली है जिसकी जड़ें भारतीय उपमहाद्वीप में हैं। भारत, नेपाल और श्रीलंका में आयुर्वेद का अत्यधिक प्रचलन है, जहाँ लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या इसका उपयोग करती है। आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। आयुर्वेद, भारतीय आयुर्विज्ञान है। आयुर्विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका शमन करने तथा आयु बढ़ाने से है। आयुर्वेद के अंग धन्वन्तरि आयुर्वेद के देवता हैं। वे विष्णु के अवतार माने जाते हैं। हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम्। मानं च तच्च यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते॥ आयुर्वेद के ग्रन्थ तीन शारीरिक दोषों (त्रिदोष = वात, पित्त, कफ) के असंतुलन को रोग का कारण मानते हैं और समदोष की स्थिति को आरोग्य। आयुर्वेद को त्रिस्कन्ध (तीन कन्धों वाला) अथवा त्रिसूत्र भी कहा जाता है, ये तीन स्कन्ध अथवा त्रिसूत्र हैं - हेतु , लिंग , औषध। इसी प्रकार स...
दो शब्द बनुश्रुति हैं कि कलिकाल के पारम्भ में भूतभावन भगवान शंकर ने प्राचीन ' मंत्र, तंत्र, शास्त्र के सभी मंत्रों तथा तंत्रो को रस दृष्टि से कील दिया कि कलियुग के अविचारी मनुष्य उनका दुरुपयोग न करने लगें । महामंत्र गायत्री भी विभिन्न ऋषियों द्वारा शाप ग्रस्त हुआ तथा उसके लिए भी उत्कीलन की विधि स्वीकृत की गयी। अन्य मंत्रों तथा तंत्रो के लिए भी उत्कीलन की विधियाँ निर्धारित की गई हैं । जब तक उन विधियों का प्रयोग नहीं किया जाता, तब तक कोई भी मंत्र प्रभावकारी नहीं होता । शास्त्रीय-मन्त्रों की उप्कीलन विधियों का वर्णन मन्त्र शास्त्रीय ग्रन्थों में पाया जाता हैं उनका ज्ञान संस्कृत भाषा के जानकार हो प्राप्त कर पातेते हैं। शास्त्रीय-मन्त्रों के कीलित हो जाने पर लोक-हिर्तयी सिद्ध-पुरुषों ने जन-कल्याणा्थ समय-समय पर लोक-भाषा के मंत्रों की रचना की । इन मन्त्रों को ही "शाबर मंत्र" कहा जाता हैं । "शाबर मंत्र तंत्र लोक भाषाओं में पाये जाते हैं और उनकी साधन तथा प्रयोग विधि भी अपेक्षाकृत अधिक सरल होती हैं, साथ ही प्रभाव में भी प्राचीन शास्त्रीय मन्त्रों से स्पर्धा...
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