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कंकालमालिनी तंत्र पुस्तक || Kankaal Maalini Tantra pdf download

 
नमस्कार मित्रो आज की पोस्ट में हम इस पोस्ट में आप सभी को कंकालमालिनी तंत्र पुस्तक उपलब्ध करा रहें हैं। देखिए कंकाल शब्द से अस्थिपंजर का तात्पर्य ध्वनित होता है, तथापि यहाँ उसका अर्थ है मुण्ड-गरमुण्ड ! जिनको ग्रीवा नरमुण्ड माला से सुशोभित हैं, ये हैं की जो मुण्डमाला है, यही है वर्णमाला, अर्थात् जिन्होंने वर्ण की माला को अपनी ग्रीवा में धारण किया है, वे हैं कंकालमालिनी ।

इस तंत्र के प्रथम पटक में वर्णमाल की व्याख्या अंकित है। इस तंत्र के अनुसार अ से अः पर्यन्त स्वर वर्ण सत्वमय है क से व पर्यन्त वर्णसमूह को रजोमय तथा दक्ष पर्यन्त के वर्णसमूह को तमोगय कहा गया है।

द्वितीय पद में मन्त्रार्थयत आदि का अंकन है। तृतीय पटल गुरु अर्चना से सम्बद्ध है। इसमें अमित फलप्रदायक रुगु-कवच गुरु तथा गोता का भी समावेस है । गुरुतत्व की महनीयता से यह पटल ओतप्रोत है ।

चतुर्थ पटल में महाकाली मंत्र एवं उसके माहात्म्य का अंकन है। इसमें क्षर मंत्र भी उपदिष्ट है। साथ हो महाकाली की सम्यक पूजाविधि का भो निर्देश दिया गया है।

पंचम पटल महाकाली के अनन्य कों के लिये हितकारी है। इसमें पुरश्चरण विधान प्रातः कृत्य, स्नान, संध्या, तर्पण, गणपति, भैरव, क्षेत्रपाल प्रभृति देवताओं की बलि भूतशुद्धि न्यासादि का भी उपदेश दिया गया है । पुरश्चरण विधान का समापन करते हुये डाकिनी- राकिनी आदि देवियों का बीजोद्वार भी इस तंत्र की विशेषता परिचायक है।

यह तंत्र दक्षिणाम्नाम के अन्तर्गत है अर्थात् यह शिव के अघोर मुख से अभिनित है। अभयाचार तन्त्रमतानुसार दक्षिणाम्नाय से सम्बन्धित है- बगला, बचिनी, स्वरिता, घनदा, महिषति, महालक्ष्मी । यह कहा जाता है कि यह तंत्र प्रारम्भ में ५०००० क्लोकों से युक्त था, परन्तु काल के प्रवाह में लुप्त होते-होते जो अवशिष्ट है, उसे ही अनुवाद के साथ पाठकगण के लाभार्थ प्रस्तुत किया जा रहा है।

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