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माता भुवनेश्वरी रहस्य पुस्तक बिल्कुल फ्री।( Bhuvanesvari Rahasya pdf)

जानकारी पुस्तक का नाम Bhuvanesvari Rahasya pdf साइज 35.5 Mb प्रदानकर्ता श्र राम परिवार लेखक - प्रष्ठ 279 प्रकाशन - YouTube channel plz subscribe Subscribe भुवनेश्वरी अर्थात संसार भर के ऐश्वयर् की स्वामिनी। भुवनेश्वरी आदिशक्ति पार्वती का पंचम स्वरूप है जिस रूप में इनहोने त्रिदेवो को दर्शन दिये दिये थे। देवी भागवत में इस बात का स्पष्टीकरण मिलता है। वैभव-पदार्थों के माध्यम से मिलने वाले सुख-साधनों को कहते हैं। ऐश्वर्य-ईश्वरीय गुण है- वह आंतरिक आनंद के रूप में उपलब्ध होता है। ऐश्वर्य की परिधि छोटी भी है और बड़ी भी। छोटा ऐश्वर्य छोटी-छोटी सत्प्रवृत्तियाँ अपनाने पर उनके चरितार्थ होते समय सामयिक रूप से मिलता रहता है। यह स्वउपार्जित,...

पितृ दोष क्यों लगता है क्या इसके उपाय है।केसे पहचाने कुण्डली में पितृ दोष (Pitru Paksha or Pitru dosh)

Pitru Paksha 2022 lakshan and Upay: पितृ पक्ष पूर्वजों का आदर सत्कार करने का समय होता है। मान्यता है साल में 15 दिन पितर धरती लोक पर आते हैं और परिजनों द्वारा किए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध से तृप्त होते हैं। श्राद्ध पक्ष को पितर दोष से मुक्ति पाने का खास अवसर माना जाता है. पितरों के आशीर्वाद से परिवार और घर फलता-फूलता है लेकिन अगर पूर्वज नाराज हो जाए तो कई पीढ़ियों तक पितृ दोष का दंश झेलना पड़ता है। आइए जानते हैं किन गलतियों से लगता है पितृ दोष, पितृ दोष के लक्ष्ण और पितृ दोष शांति के उपाय। पितृ दोष क्यों लगता है ? (Pitra Dosh reason) मृत्यु के बाद अगर विधि विधान से अंतिम संस्कार की प्रक्रिया न की जाए तो ऐसे में पितृ दोष लगता है. अकाल मृत्यु हो जाने पर परिवार के लोगों को कई पीढ़ियों तक पितृ दोष दंश का सामना करना पड़ता है. ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष को अशुभ और दुर्भाग्य का कारक माना जाता है. अकाल मृत्यु होने पर पितर शांति पूजा करना जरूरी माना जाता है. माता पिता का अनादर, मृत्यु के बाद परिजनों का पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध न करने पर पूरे परिवार पर पितृ दोष लगता है. पितरों का अपम...

प्रपंचसार तंत्र ग्रंथ PDF बिल्कुल फ्री।

  आदिशंकराचार्य : ये भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। उन्होने अद्वैत वेदान्त को ठोस आधार प्रदान किया। भगवद्गीता, उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। उन्होंने सांख्य दर्शन का प्रधानकारणवाद और मीमांसा दर्शन के ज्ञान-कर्मसमुच्चयवाद का खण्डन किया। परम्परा के अनुसार उनका जन्म 508-9 ईसा पूर्व तथा महासमाधि 477 ईसा पूर्व में हुई थी।  इन्होंने भारतवर्ष में चार कोनों में चार मठों की स्थापना की थी जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी 'शंकराचार्य' कहे जाते हैं। वे चारों स्थान ये हैं-  (१) ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, (२) श्रृंगेरी पीठ, (३) द्वारिका शारदा पीठ और (४) पुरी गोवर्धन पीठ।  इन्होंने अनेक विधर्मियों को भी अपने धर्म में दीक्षित किया था। ये शंकर के अवतार माने जाते हैं। इन्होंने ब्रह्मसूत्रों की बड़ी ही विशद और रोचक व्याख्या की है। उनके विचारोपदेश आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित हैं जिसके अनुसार परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रहता है। स्मार्त संप्रदाय में आदि शं...