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श्री विद्या देवी ललिता त्रिपुरसुन्दरी से सम्बन्धित तन्त्र विद्या का हिन्दू सम्प्रदाय है। ललितासहस्रनाम में इनके एक सहस्र (एक हजार) नामों का वर्णन है। ललितासहस्रनाम में श्रीविद्या के संकल्पनाओं का वर्णन है। श्रीविद्या सम्प्रदाय आत्मानुभूति के साथ-साथ भौतिक समृद्धि को भी जीवन के लक्ष्य के रूप में स्वीकार करता है।

श्रीविद्या का साहित्य विशाल है। ऋग्वेद मैं श्रीसूक्त मैं श्रीदेवी मतलब महालक्ष्मी जो परमेश्वरि के उपासना किया जाता हैं। ए ही वैदिक श्रीविद्या हैं।

श्रीविद्या के भैरव हैं- त्रिपुर भैरव (देव शक्ति संगमतंत्र)। महाशक्ति के अनन्त नाम और अनन्त रूप हैं। इनका परमरूप एक तथा अभिन्न हैं। त्रिपुरा उपासकों के मतानुसार ब्रह्म आदि देवगण त्रिपुरा के उपासक हैं। उनका परमरूप इंद्रियों तथा मन के अगोचर है। एकमात्र मुक्त पुरूष ही इनका रहस्य समझ पाते हैं। यह पूर्णाहंतारूप तथा तुरीय हैं। देवी का परमरूप वासनात्मक है, सूक्ष्मरूप मंत्रात्मक है, स्थूलरूप कर-चरणादि-विशिष्ट है।

श्रीविद्या के उपासकों में प्रथम स्थान काम (मन्मथ) का है। यह देवी गुह्य विद्या प्रवर्तक होने के कारण विश्वेश्वरी नाम से प्रसिद्ध हैं। देवी के बारह मुख और नाम प्रसिद्ध हैं, यथा- मनु, चंद्र, कुबेर, लोपामुद्रा, मन्मथ, अगस्त्य, अग्नि, सूर्य, इंद्र, स्कंद, शिव, क्रोध भट्टारक (या दुर्वासा)। इन लोगों ने श्रीविद्या की साधना से अपने अधिकार के अनुसार पृथक् फल प्राप्त किया था।श्री विद्या के जो प्रायः लुप्तप्राय मत है वो आज भी प्राचीनतम आगम मठ में पूर्णतः प्रचलित है ऐसा भी कहा जाता है कि भारत के पाँच भागो में पाँच मठ पूर्व में असम और अरूणाचल पश्चिम मे गुजरात उत्तर मे हिमालय दक्षिण मे कन्याकुमारी और मध्य मे मध्य प्रदेश में है।

और आज की इस पोस्ट में हम आप सभी लोगों को माता श्री विद्या से संबंधित एक बहुत अच्छी पुस्तक उपलब्ध करवा रहे हैं। इस पुस्तक को हमारे चैनल के एक सदस्य ने मांगा था, उन्हीं के निवेदन पर हम आप सभी लोगों को यह पुस्तक उपलब्ध करवा रहे हैं। पुस्तक से संबंधित सारी जानकारी मैंने आपको वीडियो में उपलब्ध करवा दिया जो आप देख सकते हैं और पुस्तक नीचे उपलब्ध करवा दी गई है अगर कोई भी परेशानी है तो आप नीचे कमेंट कर दीजिएगा आपकी जो भी परेशानी होगी उसका हल जरूर करेंगे।

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