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नमस्कार मित्रों इस पोस्ट में मैं आप सभी लोगों को भगवान देवनारायण से संबंधित जानकारी उपलब्ध करवा रहा हूं और बगड़ावत देवनारायण महागाथा नामक ग्रंथ उपलब्ध करवा रहा हूं।

भगवान देवनारायण गुर्जर जाति के आराध्य देव हैं गुर्जर जाति इन्हें अपने आराध्य देव और इष्ट देव के रूप में मानती है। भगवान देवनारायण एक बहुत ही महान योद्धा है और उनके पास अनेक प्रकार की सिद्धियां भी हैं जिनके दम पर उन्होंने जन कल्याण से संबंधित बहुत सारे कार्य किए हैं। भगवान देवनारायण ने अपने सिद्धियों से बहुत सारे लोगों के लाइलाज बीमारियों का इलाज किया यहां तक कि मृत लोगों को भी जीवित करके कई प्रकार के चमत्कारिक कार्य किए हैं। गुजर जाती है भगवान देवनारायण को भगवान विष्णु का अवतार मानती हैं।
 

परिचय

देवनारायण पराक्रमी योद्धा थे जिन्होंने अत्याचारी शासकों के विरूद्ध कई संघर्ष एवं युद्ध किये । वे शासक भी रहे । उन्होंने अनेक सिद्धियाँ प्राप्त की । चमत्कारों के आधार पर धीरे-धीरे वे देव स्वरूप बनते गये एवं अपने इष्टदेव के रूप में पूजे जाने लगे। देवनारायण को विष्णु के अवतार के रूप में गुर्जर समाज द्वारा राजस्थान व दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश में अपने लोकदेवता के रूप में पूजा की जाती है। उन्होंने लोगों के दुःख व कष्टों का निवारण किया । देवनारायण महागाथा में बगडावतों और राण भिणाय के शासक के बीच युद्ध का रोचक वर्णन है ।

देवनारायणजी का अन्तिम समय ब्यावर तहसील के मसूदा से 6 कि . मी . दूरी पर स्थित देहमाली ( देमाली ) स्थान पर गुजरा । भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को उनका वहीं देहावसान हुआ । देवनारायण से पीपलदे द्वारा सन्तान विहीन छोड़कर न जाने के आग्रह पर बैकुण्ठ जाने पूर्व पीपलदे से एक पुत्र बीला व पुत्री बीली उत्पन्न हुई । उनका पुत्र ही उनका प्रथम पुजारी हुआ ।

कृष्ण की तरह देवनारायण भी गायों के रक्षक थे । उन्होंने बगड़ावतों की पांच गायें खोजी , जिनमें सामान्य गायों से अलग विशिष्ट लक्षण थे । देवनारायण प्रातःकाल उठते ही सरेमाता गाय के दर्शन करते थे । यह गाय बगड़ावतों के गुरू रूपनाथ ने सवाई भोज को दी थी । देवनारायण के पास 98000 पशु धन था । जब देवनारायण की गायें राण भिणाय का राणा घेर कर ले जाता तो देवनारायण गायों की रक्षार्थ राणा से युद्ध करते हैं और गायों को छुड़ाकर लाते थे । देवनारायण की सेना में ग्वाले अधिक थे । 1444 ग्वालों का होना बताया गया है , जिनका काम गायों को चराना और गायों की रक्षा करना था । देवनारायण ने अपने अनुयायियों को गायों की रक्षा का संदेश दिया ।

इन्होंने जीवन में बुराइयों से लड़कर अच्छाइयों को जन्म दिया । आतंकवाद से संघर्ष कर सच्चाई की रक्षा की एवं शान्ति स्थापित की । हर असहाय की सहायता की । राजस्थान में जगह-जगह इनके अनुयायियों ने देवालय अलग-अलग स्थानों पर बनवाये हैं जिनको देवरा भी कहा जाता है । ये देवरे अजमेर, चित्तौड़ , भीलवाड़ा , व टोंक में काफी संख्या में है । देवनारायण का प्रमुख मन्दिर भीलवाड़ा जिले में आसीन्द कस्बे के निकट खारी नदी के तट पर महाराजा सवाई भोज में है । देवनारायण का एक प्रमुख देवालय निवाई तहसील के जोधपुरिया गाँव में वनस्थली से 9 कि . मी . दूरी पर है । सम्पूर्ण भारत में गुर्जर समाज का यह सर्वाधिक पौराणिक तीर्थ स्थल है। देवनारायण की पूजा भोपाओं द्वारा की जाती है । ये भोपा विभिन्न स्थानों पर जाकर लपेटे हुये कपड़े पर देवनारायण जी की चित्रित कथा के माध्यम से देवनारायण की गाथा गा कर सुनाते हैं । 

देवनारायण की फड़ में 335 गीत हैं । जिनका लगभग 1200 पृष्ठों में संग्रह किया गया है एवं लगभग 15000 पंक्तियाँ हैं । ये गीत परम्परागत भोपाओं को कण्ठस्थ रहते हैं । देवनारायण की फड़ राजस्थान की फड़ों में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सबसे बड़ी है । 
 

देवनारायण के अन्य नाम

    ११वीं कला का असवार
    लीला घोडा का असवार
    त्रिलोकी का नाथ
    देवजी
    देव महाराज
    देव धणी
    साडू माता का लाल
    उधा जी
    जय देवनारायण
    राजा सवाई भोज गुर्जर का लाल

 

2 सितंबर 1992 और 3 सितंबर 2011 को मूल्यवर्ग 5 के भारत पोस्ट द्वारा स्मारक डाक टिकट जारी किया गये थे।


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