लक्ष्मी प्राप्ति के लिए दुर्लभ श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्र

शास्त्रों में ऐसे अनेक अनुष्ठानों एवं स्त्रोतों का उल्लेख मिलता है जिनसे पैसों से संबंधित सभी परेशानियां जल्द दूर हो जाती है। लक्ष्मी प्राप्त करने के लिए धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहिए। अतः लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए सबसे अच्छा दिन शक्रवार का माना जाता है। इस दिन लक्ष्मी प्राप्ति के लिए दुर्लभ श्री 'अष्टलक्ष्मी स्तोत्र' करना चाहिए। इसका शुक्रवार के दिन श्रद्धापूर्वक पाठ करने से व्यक्ति को स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

॥ अष्टलक्ष्मीस्तोत्रम्‌ ॥


॥ आदिलक्ष्मी ॥

सुमनसवन्दित सुन्दरि माधवि चन्द्र सहोदरि हेसमवे।
मुनिगणमण्डित मोक्षप्रदायिनि मज्जुकभाषिणि वेदनुते ॥
'पडकजवासिति देवसुपूजित सदगुणवर्षिणि शान्तियुते।
जयजय है मधुसूदन कामिनि आदिलक्षिम सदा पालय माम्‌ ॥ १॥

॥ धान्यलक्ष्मी ॥

अहिकलि कल्मपनाशिनि कामिनि वैदिकरूपिणि वेदमये ।
क्षीरसमुद्भव मइगलरूपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्तरनुते
मडगलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते।
जयजय है मधुसूदन कामिनि धान्यलध्षमि सदा पालय माम्‌॥ २॥

॥ धैर्यलक्ष्मी ॥

जयवरवर्णिनि वैष्णवि भार्गवि मन्‍्त्रस्वरूपिणि
सुरगणपूजित शीघ्रफलप्रद ज्ञानविकासिनि शाखनुते ॥
भवभयहारिणि पापविमोचनि साधुजताश्रित पादयुते।
जयजव हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलध्षमि सदा पालय माम्‌॥ ३॥

॥ गजलक्ष्मी ॥

हरिहर ब्रह्म सुपृजित सेवित तापनिवारिणि पादयुते।
जयजय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम्‌ ॥ ४॥

॥ सन्तानलक्ष्मी ॥

अहिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि जञानमये ।
गुणगणवारिथि लोकहितैपिणि स्वस्सप्त भूषित गाननुते
सकल सुरासुर देवमुनीखर मानववन्दित पादयुते
जयजय है मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्षिम त्व॑ पालय माम्‌ ॥ ५॥

थर कमलासनि सद्वतिदायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये ।
गुदिनमर्चित कुइकुमधूसरभूषित वासित वादयनुते ॥

नकधरास्तुति वैभव वन्दित शइकर देशिक मान्य पदे।
पजय हे मधुसूदन कामिनि विजयलक्षिम सदा पालव माम्‌ ॥ ६॥

विद्यालक्ष्मी ॥
गत सुरेखरि भारति भार्गवि शोकविनाशिति रत्रमये।
णेमयभूषित कर्णविभूषण शान्तिसमावृत हास्यमुखे ॥
निधिदायिनि कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते
जय है मधुसूदन कामिनि विद्यालदिम सदा पालय माम्‌ ॥७॥

धनलक्ष्मी ॥

धिमिधिमि धिंधिमि धिंधिमि धिंधिमि दुन्दुभि नाद सुपूर्णमये ।
घुमघुम घुंघुम घुंघुम घुंघुम शड्खनिनाद सुवादनुते ॥

वेदपुराणेतिहास सुपूजित वैदिकमार्ग प्रदर्शयुते। 

जयजय है मधुसूदन कामिनि धनलश्षिम रूपेण पालय माम्‌ ॥ ८॥


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