Rudraksha Mhatma or darshan karne ki vidhi

Rudraksha Mhatma or darshan karne ki vidhi

 

नमस्कार मित्रों इस पोस्ट में हम आप सभी को और रुद्राक्ष धारण करने की पूरी विधि और असली और नकली रुद्राक्ष को कैसे पहचाने उससे संबंधित पुस्तक उपलब्ध करा रहे हैं।

बहुत सारे लोगों की परेशानी रहती है कि वह जो है बाजार में असली माला नहीं ले पाते नकली माला ले आते हैं और उनके परेशानी रहती है कि किस तरीके से असली रुद्राक्ष और नकली रुद्राक्ष ने वेद कर सके इसको किस तरीके से जारण किया जाए कब और किस मुहूर्त में सारे काम किए जाएं तो यह सारी जानकारी जो इस पुस्तक में आपको पूर्ण रूप से देखने को मिल जाएगी। 

मैंने आपको पहले भी एक पुस्तक उपलब्ध करवा रखी थी जो कि रुद्राक्ष और बस उन पर आधारित थी लेकिन वह पुस्तक जो इसमें रुद्राक्ष के बारे में सारी जानकारी नहीं दी गई थी लेकिन इस पुस्तक में रुद्राक्ष के बारे में संपूर्ण जानकारी आपको देखने को मिल जाएगी। 
और आप सभी लोग जानते कि रुद्राक्ष जो एक बहुत ही मुख्य चीज होती है भगवान शिव की पूजा में और अगर आप रुद्राक्ष धारण करते हैं उसके बहुत सारे लाभ आपको देखने को मिल जाते हैं।

अतः आपको भी विराट धारण करनी चाहिए और आप इस प्रस्ताव को जरूर प्राप्त कीजिएगा और नीचे जरूर कमेंट कीजिएगा कमेंट में अपनी राय जरूर बताइएगा।

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रुद्राक्ष की उत्पत्ति

रुद्राक्ष भगवान शंकर की एक अमूल्य और अद्भुत देन है। यह शंकर जी की अतीव प्रिय वस्तु है। इसके स्पर्श तथा इसके द्वारा जपन करने से ही समस्त पाप से निवृत्त हो जाते हैं और लौकिक, पारलौकिक एवं भौतिक सुख की प्राप्ति होती है।

रुद्राक्ष की उत्पत्ति के सम्बन्ध में 'शिवपुराण' में वर्णन है कि-“सदाशिव ने लोकोपकार के लिए एक दिन माता पार्वती से कहा, कि हे देवि ! मैंने पूर्व समय मन को रिथिर कर दिव्य सहस वर्ष पर्यन्त तपस्या की थी। उस समय मुझे कुछ भय-सा लगा जिससे मैंने अपने नेत्र खोल दिये। मेरे नेत्रों से आँसुओं की बिन्दुएँ (बूँदें) गिरने लगीं। वही अश्रु पृथ्वी पर रुद्रा्ष-वृक्ष के रूप में उत्पन्न हो गये, जिन्हें बाद में रुद्राक्ष के नाम से जाना गया। इन वृक्षों में जो फल लगते हैं, उन्हें रुद्राक्ष का फल कहा जाता है। यह फल 'नर मुण्ड' का प्रतीक है। रुद्राक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है, = रुद्र की आँख।"

रुद्राक्ष के सम्बन्ध में शिव तत्त्व रत्नाकर, शिवपुराण, पद्मपुराण, स्कन्दपुराण, रुद्राक्ष बालोपनिषद्‌, रुद्रपुराण, लिंगपुराण, श्रीमद्भागवत्‌ तथा देवी भागवत्‌ में विशद वर्णन देखने को मिलता है। सभी ग्रन्थों में रुद्राक्ष को साक्षात्‌ महाकाल' का परमप्रिय वस्तु माना है तथा उसके स्पर्श मात्र से परमधाम' को प्राप्त करना बताया गया है।

रुद्राक्ष की उत्पत्ति जहॉ-जहाँ सदाशिव के नेत्रों से आँसू गिरे वहाँ-वहाँ माना गया है। गौड़ देश से लेकर मथुरा, अयोध्या, काशी, मलयाचल पर्वत आदि प्रदेशों में सदाशिव के अश्रु गिरने के फलस्वरूप रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हो गये। तभी से रुद्राक्ष का माहात्म्य बढ़ गया और वेदों ने इनकी महिमा पायी।

शिवपुराण में रुद्राक्ष को बत्तीस अंगों में धारण करने के लिए बताया है। रुद्राक्ष अपने-आपमें पूर्ण तंत्र-मंत्र और यंत्र है। इसमें ऋद्धि-सिद्धि की वृद्धि निहित

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