चरक संहिता
नमस्कार मित्रों 🙏
इस वीडियो में हमने आप सभी को चरक संहिता पुस्तक उपलब्ध करवाइए जो कि आयुर्वेद का एक महान ग्रंथ इसमें आप कार्य से संबंधित कुछ जानकारी देखने को मिलेगी। इस पुस्तक में आपको आयुर्वेद की बहुत सी रहस्यमय जानकारीयो के बारे में जानने को मिलेगा तथा हर प्रकार की बीमारी को दूर करने का आयुर्वेदिक तरीका मिलेगा।
आयुर्वेद एक वैकल्पिक चिकित्सा प्रणाली है जिसकी जड़ें भारतीय उपमहाद्वीप में हैं। आयुर्वेद हमारे भारत की बहुत ही प्राचीन और बहुत बडा विज्ञान है यह आज के मॉडर्न तकनीक से भी बहुत ज्यादा आगे है। लेकिन निराशा की बात है कि यह तकनीक अब जो है ज्यादा उपलब्ध नहीं है लोग इसके प्रति इतनी ज्यादा जागरूक नहीं रहे।
आयुर्वेद का प्रारंभ
- चरक मतानुसार
आयुर्वेद के ऐतिहासिक ज्ञान के सन्दर्भ में, चरक मत के अनुसार, आयुर्वेद का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्मा से प्रजापति ने, प्रजापति से दोनों अश्विनी कुमारों ने, उनसे इन्द्र ने और इन्द्र से भारद्वाज ने आयुर्वेद का अध्ययन किया। च्यवन ऋषि का कार्यकाल भी अश्विनी कुमारों का समकालीन माना गया है। आयुर्वेद के विकास में ऋषि च्यवन का अतिमहत्त्वपूर्ण योगदान है। फिर भारद्वाज ने आयुर्वेद के प्रभाव से दीर्घ सुखी और आरोग्य जीवन प्राप्त कर अन्य ऋषियों में उसका प्रचार किया। तदनन्तर पुनर्वसु आत्रेय ने अग्निवेश, भेल, जतू, पाराशर, हारीत और क्षारपाणि नामक छः शिष्यों को आयुर्वेद का उपदेश दिया। इन छः शिष्यों में सबसे अधिक बुद्धिमान अग्निवेश ने सर्वप्रथम एक संहिता (अग्निवेश तंत्र) का निर्माण किया- जिसका प्रतिसंस्कार बाद में चरक ने किया और उसका नाम चरकसंहिता पड़ा, जो आयुर्वेद का आधार-स्तम्भ है।
- सुश्रुत मतानुसार
धन्वन्तरि ने भी आयुर्वेद का प्रकाशन ब्रह्मदेव द्वारा ही प्रतिपादित किया हुआ माना है। सुश्रुत के अनुसार काशीराज दिवोदास के रूप में अवतरित भगवान धन्वन्तरि के पास अन्य महर्षिर्यों के साथ सुश्रुत आयुर्वेद का अध्ययन करने हेतु गये और उनसे आवेदन किया। उस समय भगवान धन्वन्तरि ने उन लोगों को उपदेश करते हुए कहा कि सर्वप्रथम स्वयं ब्रह्मा ने सृष्टि उत्पादन के पूर्व ही अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद को एक हजार अध्यायों तथा एक लाख श्लोकों में प्रकाशित किया और पुनः मनुष्य को अल्पमेधावी समझकर इसे आठ अंगों में विभक्त कर दिया। पुनः भगवान धन्वन्तरि ने कहा कि ब्रह्मा से दक्ष प्रजापति, उनसे दोनों अश्विनीकुमारों ने, तथा उनसे इन्द्र ने आयुर्वेद का अध्ययन किया।
आयुर्वेद का काल-विभाजन
आयुर्वेद के इतिहास को मुख्यतया तीन भागों में विभक्त किया गया है -
संहिताकाल
संहिताकाल का समय 5वीं शती ई.पू. से 6वीं शती तक माना जाता है। यह काल आयुर्वेद की मौलिक रचनाओं का युग था। इस समय आचार्यो ने अपनी प्रतिभा तथा अनुभव के बल पर भिन्न-भिन्न अंगों के विषय में अपने पाण्डित्यपूर्ण ग्रन्थों का प्रणयन किया। आयुर्वेद के त्रिमुनि - चरक, सुश्रुत और वाग्भट, के उदय का काल भी संहिताकाल ही है। चरक संहिता ग्रन्थ के माध्यम से कायचिकित्सा के क्षेत्र में अद्भुत सफलता इस काल की एक प्रमुख विशेषता है।
व्याख्याकाल
इसका समय 7वीं शती से लेकर 15वीं शती तक माना गया है तथा यह काल आलोचनाओं एवं टीकाकारों के लिए जाना जाता है। इस काल में संहिताकाल की रचनाओं के ऊपर टीकाकारों ने प्रौढ़ और स्वस्थ व्याख्यायें निरुपित कीं। इस समय के आचार्य डल्हण की सुश्रुत संहिता टीका आयुर्वेद जगत् में अति महत्वपूर्ण मानी जाती है।
शोध ग्रन्थ ‘रसरत्नसमुच्चय’ भी इसी काल की रचना है, जिसे आचार्य वाग्भट ने चरक और सुश्रुत संहिता और अनेक रसशास्त्रज्ञों की रचना को आधार बनाकर लिखा है।
विवृतिकाल
इस काल का समय 14वीं शती से लेकर आधुनिक काल तक माना जाता है। यह काल विशिष्ट विषयों पर ग्रन्थों की रचनाओं का काल रहा है। माधवनिदान, ज्वरदर्पण आदि ग्रन्थ भी इसी काल में लिखे गये। चिकित्सा के विभिन्न प्रारुपों पर भी इस काल में विशेष ध्यान दिया गया, जो कि वर्तमान में भी प्रासंगिक है। इस काल में आयुर्वेद का विस्तार एवं प्रयोग बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है।
स्पष्ट है कि आयुर्वेद की प्राचीनता वेदों के काल से ही सिद्ध है। आधुनिक चिकित्सापद्धति में सामाजिक चिकित्सा पद्धति को एक नई विचारधरा माना जाता है, परन्तु यह कोई नई विचारधारा नहीं अपितु यह उसकी पुनरावृत्ति मात्र है, जिसका उल्लेख 2500 वर्षों से भी पहले आयुर्वेद में किया गया है जिसके सभी सिद्धांतो का प्रत्येक शब्द आज इतने सालों बाद भी अपने सूक्ष्म और स्थूल हर रूप में सही सिद्ध होता है। जैसे कुछ समय पूर्व आधुनिक वैज्ञानिकों ने कृत्रिम नाक बनाए जाने का काम किया है और उन वैज्ञानिकों के अनुसार उनका यह काम सुश्रुत संहिता के मूल सिद्धांतों को पढ़कर और उसपर आगे विस्तृत कार्य करने के बाद ही संभव हो पाया है।
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आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
🌹🏵️ ।।जय मां भवानी।।
3 टिप्पणियाँ
Hindi ki pustak 800 mb ki hai aur Sanskrit ki pustak 150 mb ki hai😆
जवाब देंहटाएंJi page ki quality ka antra hai
हटाएंइसका पासवर्ड बताओ सर
जवाब देंहटाएं